किरण राजपुरोहित नितिला री कवितावां

हिवड़ै रा भाव
हिवड़ै रा भाव
सबदां रै ढीलै बंध में
कियां बाधूं  !
हिवड़ै रा भाव मरम ढाळूं तो
लिपि बिखरै
मातरावां सूं नीं आवै ताबै
आखरां सूं आपळता
सुरां नै नीं संभाळै
इण हियै रा भाव !
सूत्र बणार सांवट ल्यूं
फर्मा में ही टीप द्यूं
रीत-रिवाज सूं अळगा
कोई गणित-विग्यान नीं है
हिवड़ै रा भाव
जिको सोचूं
बो कियां लिखूं
सोच-विचार नै समझ ई समझावै
थाम थामर राखूं पण
म्हारै सूं धकै भाज-भाज जावै
किणी न किणी गोखां सूं
छेकड़ झांक ई जावै
म्हारै हिवड़ै रा भाव !
***

बा उतरी...
बा उतरी......
सजग हुयो
म्हारो मन
औचक सूं

निजर गई घूम नै
देख्यो द्वारै
कोइ नीं हो
पण लाग्यो  जाणै कोई हो
म्हैं उणरी निजरां में ही
पण म्हारी निजरां
अळगां तांई जा र
रीती ई पाछी आई!

मन मांय उणी घड़ी सूं
कोई गूंजण लाग्यो
रीती जग्यां
जाणै खणखण खणकी
जाणै कोई पांवणो
आयो हुवै थोड़ी ताळ सारु
अर  दब करतो अंतस रै आंगणै
आय ढूकग्यो हुवै कोई
टमटोळती आखरां जैड़ी आंख्यां
लकदक मनचीता  भावां सूं भरियोड़ो ।

जाणै थरपीज्यो हुवै
कोई एक चितराम
अर मन गावण लाग्यो गीत
वा उतरी म्हारै कागदां
बण परी कविता !
***

1 टिप्पणी:

  1. साची बात...कोई गणित-विग्यान नीं है हिवड़ै रा भाव....सोच स्यूं ही कविता उपजै...और बेहतरीन कवितावां ख़ातिर म्हारी शुभकामनावां

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