अतुल कनक री कवितावां

अखबार में नाहर चूमती बायर को फोटो देख्याँ पाछै       
(1)                                      
ऊँ को हेत छै
जे हौंसलो द्ये छै
नाहर के ताँई भी चूम लेबा को
न्हँ तो
कांई जेज लागे छै
मनख्यावड़ा मरद ईं भी
मनखखोर होबा में?
***

(2)
नत पाँतरै
छपै छै खबराँ
के डायजा बेई बाळ दी जीवती बायर
के सगा काका ने ही खैंच द्या
मासूम बच्ची का उणग्यारा पे
हवस का रींगटा
के कोय मनख
टॉफी को लालच दे
नान्हा टाबर ईं ले ग्यो
लोथ को सुवाद चाखबा बेई।

मनख का भेख में धूमता
भेड़ियान् सूँ बचबा कारणै
जाबक जरूरी हो ग्या छै नाहर को सगपॅण/
नाहर पींजड़ा में छै भी तो कांई
भेड़ियान् अर सुआळ्याँ ईं भगाबा बेई तो घणीं छै
पींजड़ा में बुज्या नाहर की दकाळ भी।
मनख हो के जनावर
जूण तो हेत ही हेरे छै
अर जे साता को पतियारो देवे
जिनगाणी का कँचळाया हाथाँ में@
ऊँ ने कोय कष्याँ न्हँ चूमै?
***

सीख
पौसाळ जाती बेटी का हाथाँ में,
नतके सौंपूँ छूँ एक पुसप गुलाब को/
सिखाबो चाहूँ छूँ अष्याँ
के धसूळाँ के बीचे र्हैर भी
कष्याँ मुळक्यो जा सकै छै,
अर कष्याँ बाँटी जा सकै छै सौरम।
***

सुख
बारणां में खिल्याया छै
घणकरा गुलाब/ राता- धौळा- पैळा
एक एक डाळ पे तीन तीन
कोय पे तो ईं सूँ भी बदर.......

म्हूँ खाद पटकूँ छूँ क्यारी में
हाथाँ में खुरपी ले
खुरपूँ छूँ माटी
अर गाबा पे लागी माटी झटकारबा सूँ प्हैली
चूळू भर सौरम को
पी लूँ छूँ बसंत।
***

1 टिप्पणी:

Text selection Lock by Hindi Blog Tips