सोहन लाल रांका ‘सहज’ री कवितावां


कियां बैठगै बात करां
(आ बैठ बात करां रा कवि श्री रामस्वरूप किसान खातर)

भागम-भाग हुई जिंदगाणी, अबै चौपालां री बात कठै
देर रात तक पड़ै जागणो, मुद्दत स्यूं देखां प्रभात अठै
ऊभ्यो आणो पड़ै भीड़ में, किण बिद सीधी लात करां
…कियां बैठगै बात करां ?

कदैई हथाई करी बड़ेरा, अब तो करणी हाथापाई है
दुख-सुख में आडो आणै री, असल बात बिसराई है
होडम-होड लागी सगळां में, इज दूजै नै मात करां
…कियां बैठगै बात करां ?

ओखो मौको मिलै कदै, करसां होटल में खाणो-पीणो
देर रात तक डांस पार्टी, मौज-मस्ती री ओ है जीणो
नवैं जमानै रो फलसफो है, दिन स्यूं उजळी रात करां
…कियां बैठगै बात करां ?
***

खुरचण
थूं खुरच-खुरच मत खुरचण खा
कर मेहनत मजदूरी खुद भी कमा
थूं खुरच-खुरच मत खुरचण खा

खुरचण तो छेकड़ खुरचण है
आ तो जदै कदै मुक ज्यासी
पैंदो झलक पड़ैलो जदै
फेरूं कुणसी खुरचण खासी
इण खातर बोलूं चेत अभी
आपणै आप नै मत भटका
थूं खुरच-खुरच मत खुरचण खा

उळीचां हुवै कुआं खाली
फेरूं खुरचण कतरी है मोटी
ओ पेट ठांव अनोखो है
ऐनै तो नित ही चाहिजै रोटी
सुण रोटी बिना ना भरै पेट
खुरचण नै मूंडै ना ही लगा
थूं खुरच-खुरच मत खुरचण खा

सम्मन मिलै है बींनै ही
जिको कमा कुछ घर लावै
मोटियार बो ही कहलावै है
जिको पुरुषार्थ नै अपणावै
थूं मिनख जमारो पायो है
फेरूं क्यों बैठियो है मुंह लटका
थूं खुरच-खुरच मत खुरचण खा

जिको जिको खुरचण खावै
बो प्रीत नहीं निभा पावै
आ बात लोक मानता है
बियाव है बारै आंधी आवै
किर किर करदै बा खाणै मांय
इण भांत किस्मत हुवै खफा
थूं खुरच-खुरच मत खुरचण खा

मिनख अणखाणो बो लागै
जिको कामचोर बणै नै भागै
मन बणा जुटै काम में जो
बां री ही किस्मत है जागै
काम करियां बिना ना काम चालै
कदै तांई बैठो करसी गटका
थूं खुरच-खुरच मत खुरचण खा

दूर दिसावरां मांय जाय बड़ेरा
किंयां मेहनत मजूरी करता हा
खुद री किस्मत बदळण तांई
बै किस्मत स्यूं भी लड़ता हा
ले गै हिम्मत बां बड़ेरां स्यूं
थूं भी कुछ बांरी राह अपणा
थूं खुरच-खुरच मत खुरचण खा

आं हाथां स्यूं कर मेहनत आछी
फेरूं दूर हुवैली सै अड़चण
खुद री तो पेट भरसी पूरो
टाबर भी पासी पूरो पोषण
दो हाथ मिल्या है काम करण
आं स्यूं सोई तकदीर जगा
थूं खुरच-खुरच मत खुरचण खा ।
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