मदन गोपाल लढ़ा री कवितावां

कविता रै ओळै-दोळै
भायलो बोल्यो
कांई सोचै है
एकलो बैठ्यो
आव घूमर आवां
गुवाङ में.

कियां समझावूं
गुवाङ तो गुवाङ
म्हें तो घूम लेवूं
आखी स्रिस्टी मांय
कविता रै ओळै दोळै
एकलो बैठ्यो ई.
***

एक माङो सुपनो
बा लपर-लपर करर आपरी बूक सूं
तातो लोई पीवै है
अन्धार घुप्प मांय उणरी आंख्या
बिजली दांई चमकै है
मून मांय उणरी सांस रा
सरणाट बाजै
म्हें एकलो
डर सूं धूजतो
कदी उण नै तकावूं
अर कदी हाथ में
भैळी करियोङी कवितावां नै.
***

थारै मिलणै रो मतळब
थारै पैलै दरसाव
म्हारै हिवङै
जलमी एक चावना
कै कींकर ई हुवै
थारै सूं ओळ्खाण

कैङी मुलाकात है आ
ओ म्हारी जोगण !
ज्यूं-ज्यूं
म्हें थंनै जाणूं
खुदोखुद नै बिसरूं
आंतस री अन्धेरी सुरंग में उतरूं

कठै ई
थारै मिलणै रो मतळब
म्हारो गमणो तो कोनी.
***

प्रीत रो पानो: तीन चितराम
(एक)
थारो प्रीत रो पानो
म्हैं सांभ राख्यो है
ओरिया री संदूक मांय.

नितुगै जोवूं
प्रीत री आ अनमोल सैनाणी
चाव सूं बांचू
हेत रा हरफ़
चाणचाण हरो हुय जावै
सूखो ठूंठ बगत
हियै तांई पूगण ढूकै
मधरी - मधरी सौरम।
जुनो प्रीत रो पानडो
समंदर बन जावै
औळूं रै आंगणै।
***

(दो)
रेसमीन रुमाल में
लपेट
जिण ढाळै
थूं म्हनैं सूंप्यो हो
प्रीत रो पैलो पानडो
ओजूं ई म्हनै लागै
सपनै री गळांई.

कदी-कदास
एक सपनै मांय ई
बीत जावै
आखी जिनगाणी.
***

(तीन)
बोदो कागद पोचग्यो
हरफ़ां रो रंग
मोळो पड़ग्यो
प्रीत री पैली पाती माथै
जमगी
बगत री खंख.

पण हाल बाकी है
थारी उडीक !
***

उडीकै है पींपळ
उजड़्योड़ै कुंभाणै री
गुवाड़ में ऊभो
ओ पींपळ
फ़गत एक रूंख कोनी
गांव रै बडेरै गळांई है
जको लारै छूटग्यो.
इकचालीस रै साल
तोपाभ्यास सारू
जिण चौंतीस गांवां री जमीं
सेना नै सूंपीजी
उण में एक हो कुंभाणो.
गांव जैड़ो गांव हो कुंभाणो
जीतो जागतो
एक काळजै धड़कतो गांव
सवा सौ घरां री बस्ती
जठे पड़तख दीसता
जूण रा हजार रंग.
ठाकुर जी रै मिंदर रै नगाड़ै सागै
ऊगतो हो दिन
अर इण पींपळ हेठै ई
गुरबत बिचाळै बिसूंजतो
भोर सू आथण तांई
खेत रो खोरसो
डांगरा री टंडवाळी
आसरा री सार-संभाळ
तीज-तिंवार रा नेगचार
सांचाणी सतरंगी हो
जीवण रो आंगणो.
पींपळ रै डावै पासै
भंवरियै कुवै माथै
पणिहारियां री लेण कोनी टूटती
गौर पूजण
जद गांव री छोरिया-छापरियां
पींपळ हेठै भेळी हुय
गीतां रा सुर छेड़ती
उण घड़ी पींपळ रै हिवड़ै
उमाव मावड़तो कोनी
काती में भोरानभोर
गांव री लुगायां
भजनां भेळी
पैलपोत
पींपळ ई सींचती.
पण अबै कठै बो कुंभाणो
हणै तो साव उजाड़ है
ओळूं नै टाळ
जमींदोट हुयोड़ा ढूंढां
बिना छात रा आसरा
बिना भींतां री बाखळ
माणस बिहूणो
बांडो बूचो गांव
घणो अणखावणो लागै.
अबै कोनी सुणीजै
दिन छिपतां ई
बावड़तै पसुवां री टण-टणाट
कोनी दीसै
पोसाळ में टाबरियां रा टोळ
फ़गत हवा री सूंसाट
मून सागै
बाथेड़ो करती लखावै.
कुंभाणै रै एनाणां री
साव एकलो
रुखाळी करतो
बूढ़ियो पींपळ ई
अणमनो-सो दिन टिपावै
जाणै डोकरो
उडीकतो हुवै
कै कदी कोई
नूंवो परणीज्योड़ो जोड़ो
गंठजोड़ै री जात रै मिस
उणै हेठै आयर बैठ जावै
अर बडेरो पींपळ
आसीस रै ओळांवै
आपरी बच्योड़ी उमर सूंप
मुगत हुय जावै.
***

देस री ओळूं मांय
केसरिया बालम आवो नीं
पधारो म्हारै देस...
मिसरी सूं मीठी है
थारै मोबाइल री कालरटून
थमो थमो सुनयना !

मती उठावो थे म्हारो फोन
थारै सागै बंतल सूं पैलां
म्हैं इण गीत नै सुणनो चावूं।

घर सूं चार सौ कोस दूर बैठ्यो म्हैं
इण गीत री मीठी धुन रै मारफ़त
घर रो गङो लगावणो चावूं।

खंभात री खाङी खंनै सौराष्ट्र में
है म्हारो रैवास
कोई मजा रै भाळै कोनी
जीविका री मजबूरी है
नींतर म्हनैं तो अजैं ई
रोजीनैं धोरां रा ई सुपना आवै है ।

लारलै दिनां री बात है
अलंग शिपयार्ड सूं साग-भाजी खरीदतां थकां
जोग सूं म्हनैं एक बाङमेरी मजूर मिलग्यो
सांचाणी उणरै बांथ घालर रोवण रो जी करियो।

म्हैं बाङमेर कदैई कोनी देख्यो
कोनी बठै म्हारो कोई समंध-सगपण
पण कांई ठा क्यूं
बो बाङमेरी मजूर
आपरो-सो लाग्यो म्हनैं।

इण सूं बत्ती कांई हुसी
कै इण नागण जैड़ै
राजमारग आठ माथै
आर जे नम्बर वाळी गाडी देख्यां ई
जी सोरो हुय जावै
जाणै म्हारै हियै री
कळी- कळी खिल जावै ।

थूं हांसैला
म्हारीं बातां नै
गैलायां मान
पण कूड़ कोनी कैवूं
देस नै जाणणै खातर
दिसावरी घणी जरुरी हुवै

कोनी समझी गैली !
बियां किणीं चीज नै आपां
गमायां पछै ई तो
सावळ जाणां ।
गमायां पछै ई तो
उण री करां चावना ।
***

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