उम्मेद गोठवाल री कवितावां

मिणत
ठेठ
गांव रो
भोळो माणस
निपजाऊ
बणार राखै
मन रो खेत,
तोपै बीज
भलै विचारां रा,
निपजावै
हाङ-तोङ मिणत सूं
ईमान,सादगी,सरळता
री फसल।
जे ऊग आवै
छळ, कपट
अर
ऊंचो दीखंण री हूँस रो
अळसू-पळसू,
तो बचावै.. फसल
कर'
संस्कारां रै कसीयै
सू निनांण।
फेरूं ई नीं बरसै
हेत रो बादळ,
कदे-ई मारज्या
अपसंस्कृति रो पाळो
अर कदे-ई लागज्या
बेबसी-लाचारी
कमजोरी-गरीबी रा
लट, कातरा
फसल
होज्या चौपट
अर बिच्‍यारै रो खेत
रैयज्या
खाली रो खाली ।
***

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