अंकिता पुरोहित"कागदांश" री कवितावां

म्हारा दादोसा
जद तक
दादोसा हा
घर में डर हो
दादोसा रै गेडियै रो।

गेडियै रो ज्यादा
पण दादोसा रो कम
डर लागतो म्हानै।

दादोसा
घर री
नान्ही मोटी जिन्सा
अर खबरां माथै
पारखी निजर राखता
बां री जूनी
मोतिया उतरियोडी
आंख्यां सूं पड़तख
कीं नीं सूझतो
पण हीयै री आंखियां सूं
स्सौ कीं देखता
म्हारा दादोसा ।

घर जित्ती ई
परबीती री चिंता
अखबार भोळावंतो
बा नै हरमेस
अर बै आखै दिन
चींतता घर आयां बिच्चै
जगती री चिंतावां नै ।

अखबार समूळो बांचता
विज्ञापन तक टांचता
भूंडा विज्ञापन
अर फिल्मी पान्नां
हाथ नीं लागण देंवता
म्हां टाबरा रै
फाड़ च्यार पुड़द कर
राख लेंवता सिराणै नीचे
जीमती बरियां
गऊ ग्रास राखण तांईं
कीं पान्ना देंवता दादीसा नै
जीमती बरियां
इंयां ई करण सारू।

टाबरो पढल्यो दो आंक !
पढ्योड़ो-सीख्योड़ो ई काम आवै !!
इण रट रै बिचाळै
खुद पढता आखो दिन
पढता- पढता ई
गया परा दूर म्हा सूं
पण आज भी घर में
दादोसा री बातां रो डर है
डर है भोळावण रो !

आज भी म्हे टाबर
विज्ञापन अर फिल्मी पानां
टाळर बांचां अखबार
कै बकसी दादोसा !
दादोसा कोनीं आज
फगत गेडियो है
एक कूंट धरियो
आज डर नी है
गेडियै रो ।
***

चिड़कळी

एक डाळी सूं
दूजी डाळी
भच्च कूदै चिड़कली
पकड़ै अर मारै फिड़कली।

आभै उडै
उतरै
काच्ची डाळी
डरै नीं
डाळी रै टूटण सूं
उण नै रैवै
पूरो विसवास
आपरी आंख माथै
अर पांख माथै।

उडणो सिखावै मा
आंख-पांख
देण विधना री
पण
हूंस पाळै
खुद चिड़कली
उड़ै खुद, मारै फिड़कली
हूंस पाण उडै चिड़कली !
***

मा
मा जाणै
जादूगरनी है
जाण लेवै
मन री अणकथ बात ।

मा नै दिखै
टाबरां रै मुंडै
अणकथ मनगत
स्यात मा जाणै
मन बांचणो ।

मा उतर जावै
मन, माथै अर पेट में
अनै जाण लेवै
मन री बातां
माथै री चिंता
भीतरलो डर
अर
पेट री भूख ।

मा सूं क्यूं नीं लुकै
म्हारै मन री बातां
दिन-रात
भलांईं रैवो अळगी
पण किंयां करै
बा ई बात मा
जकी म्हैं करणी चाऊं
उण रै साथ

मा !
तू रैवै स्यात
म्हारै मांय
दिन-रात ।
***

दिवला अर बाट
छोरा
घर रा
होवै दिवला
तो छोरियां
होवै बाट
दोन्यां नै राख्यां बराबर
सैंचण होवै घर
फेर पसरै ठाट ई ठाट !

च्यानणों दिवलो करै
लोगड़ा भरमै क्यूं
बिन्यां बाट
कदै ई नीं देख्यो
दिवलै नै करता च्यानणों ।

दिवलै अर बाट री
मैमा नै समझणो पड़सी
दिवलै रै साथै
बाट नै भी
अरथावणो पड़सी।
***



अंकिता पुरोहित"कागदांश"
जनम= 29 नवम्बर 1985
भणाई=एम.ए.[राजस्थानी]
प्रकाशन=पत्र-पत्रिकावां में रचनावां रो लगोलग प्रकासण
ठावो ठिकाणो=24 -दुर्गा कोलोनी, हनुमानगढ़ संगम-335512
कानांबाती=01552-268863
ब्लोगड़ो= http://www.kagadansh.blogspot.com/

2 टिप्‍पणियां:

  1. अंकिता बाई आपरी कवितावां में साच है.. दादों जी रै गेडिये सूं डरता पण आज कुण डरावे दादोजी रै गेडिये सूं.....मन मायं चितराम मांड दिया थे तो...

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  2. छोरा घर रा
    हुव
    दिवला...
    बहुत सुन्दर रचना |

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