चेतन स्वामी री कवितावां

सवाल
आवो ! थांरै खातर
ढळावां हिंगळूं ढोलिया
रंगावां मैंमद मोळिया

किण केयो कोई बात हुई
थे केवो दिन- तो दिन
नींतर रात हुई

थे देव !
म्हैं किरोड़ूं-किरोड़ देवळियां

थांरो प्रजातंतर
म्हां कनै न डोरो
न डांडो न जंतर
थां माथै क्यां सूं चलावां मूठ

म्हैं मूढ़
थारां करतब कोर्स में पढ़ावां
टाबरां नै दसवीं-ग्यारवीं करावां
रोटी जैड़ी नाजोगी चीज खातर
रोवां, धिक्कार म्हांनै

पण देवतावां थानै
कद पूछसी थांरी आतमावां सवाल
कै म्हांरा कुण करिया ए हैवाल
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