शंकर लाल मीणा री कवितावां

बा बात
जाणू हूं
घणो इज कीं कैयो हुवैला थे
पण कीं
याद नीं कर पाऊं म्हूं
बार-बार कोसीस करूं
जणाई ।

पण हां,
बा बात
एक छिन खातर ई नीं भूल्यो हूं म्हे
जिकी
बरसां तांइ कहूं कहूं करर ई
थे कह नीं सक्या हा
कणांई ।
***

खास खुसी
म्हूं सोच्यो हो
कै मिल-बांटसी वो
आपरी खास सुखी
म्हारै साथै
एक मुलाकात मांय
उण
चलार कैयी ही म्हने
आ बात ।

पण
आ उण बखत री बात है
जद उणनै ओ अहसास नीं हो
उण खुसी री उडीक ति ही
पण वा मिल इज जावैली
ओ विस्वास नीं हो ।
***

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