सिया चौधरी री कवितावां

ओळ्यूं आई
ओळ्यूं आई...
माँ के सागै थांरी
करती ही हताई
फेर आ जावंती लाज
जद माँ बतावती
सासरियै री कोई बात...

म्हानै पाछी
ठंडा बायरा सी
ओळ्यूं आई...
बैनां चिडावती,
हंसती अर कैवंती
ओ लाडेसर जीजी,
थारो ब्यांव करांला
खैर रै उपरालै बैठा...

फेर कठै सूं
थाकेडी सी म्हणे
ओळ्यूं आई...
बिना खोट, क्यों थे
भेज दियो संदेशो
कै नहीं आवैली
म्हारै माँढ़े उपरा
थारी बारात.......
***

कद तांई ???
म्हारै हिवड़ै रा खुणा खुणा
बैठ्या हो थे बण देवाता
म्हारा प्रीत-धूप्या नै कैवो
कद तांई नीं निरखोला थे

आस-मोती टूट बिख्ररिया
पडिया थारै पगथ्या मांय
इणा री राखण लाज सारू
कद तांई नीं पतिजोला थे

आंधा रो गुड आ प्रीतड़ली
कैवणू दोरो, रैवणू सांसो है
म्हारा अणकथ बखाणा नै
कद तांई नीं समझोला थे

थारी मरवण घणी उडीकै
कदै आव, बतळाव ही ल्यो
बणिया भाटो, म्हें भी देखूं
कद तांई नीं सरकोला थे
***  

3 टिप्‍पणियां:

  1. घणो सरावणजोग कारज है आपरो। सगळा राजस्थानी साहितकारां ने एके सागे अठै भणनो चोखो भाव जगावे। आ धारा यूं इज बैवती रेवे आ इ कामना है।

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  2. घणो सरावणजोग कारज है आपरो। सगळा राजस्थानी साहितकारां ने एके सागे अठै भणनो चोखो भाव जगावे। आ धारा यूं इज बैवती रेवे आ इ कामना है।

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