कल्याण सिंह राजावत री कवितावां

बात
थे जानौ अर जाणा म्हे ही, थारे म्हारे कितरी बात
कुण कुण ने दयां साफ़ सफाई, जीतरा मूंडा उतरी बात !

दो हिवङा री हेत हथाई, जणा जणा री चढ़े जबान
सळ नै सळ ही रेवण दयो, अब तो सारे बिखरी बात !

प्रीत रीत पथ मीत देखता और देखता हंस बतलाण
लोगा रे बधगी अबखाई , म्हे तो जाणा इतरी बात !

थांरे खातर तन मन वारा, धन संपत सू दे सनमान
पण थांरी नासमझी सू ही , बीच बजारा बिकरी बात !

गळी गळी में बेळ कुबेला, आणू जाणू है निरसार
समझा हाँ पण समझा कोनी, आ तो म्हारे नितरी बात !

मन में के मजबून देह रे , दरपण में आज्यावे सार
ओले छाने बात करा अर  चौड़े धाडे  दिखरी बात !

थांरी नां सू हुवे उदासी, थांरी हाँ , सू हरख घनो
थांरे निरखण री निजरां सू नखरा कर कर निखरी बात !
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तन में मस्ती, मन में मस्ती
फागण आयो, फागण आयो
गूंजै धूम धमाल रे
तन में मस्ती, मन में मस्ती
गळियां उडै गुलाल रे।

छैला अलबेला मदगैला
रंग-रेलां री लार है
हेलां पर हेला देवै
अधगैला देवै बारंबार है।
आ रे आज्या संग रा साथी
होज्या लालम लाल रे
तन में मस्ती, मन में मस्ती
गळियां उडै गुलाल रे।

गोरी गोरी करै ठिठोली
होवै जोरा-जोरी रे
हर कोई भोळो कान्हो लागै
हर कोई राधा गोरी रे।
रंग उड़ातां, चंग बजातां
मिटसी मनां मलाल रे
तन में मस्ती, मन में मस्ती
गळियां उडै गुलाल रे।
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घड़ला सीतल नीर रा
घड़ला सीतल नीर रा, कतरा करां बखाण।
हिम सूं थारो हेत है, जळ इमरत रै पाण॥

घड़ला थारो नीर तो, कामधेन रो छीर।
मन रो पंछी जा लगै, मानसरां रै तीर॥

घड़ला थारा नीर में, गंग जमन रो सीर।
नरमद मिल गौदावरी, हर हर लेवै पीर॥


जितरी ताती लू चलै, उतरो ठंडो नीर।
तन तिरलोकी राजवी, मन व्है मलयागीर॥

बियाबान धर थार में, एक बिरछ री छांव।
मिल जावै जळ-गागरी, बो इन्नर रो गांव॥


रेत कणां झळ नीसरै, भाटै भाटै आग।
झर झर सीतल जळ झरै, घड़ला थारा भाग॥

इक गुटकी में किसन है, दो गुटकी में राम।
गटक-गटक पी लै मनां, होज्या ब्रह्म समान॥
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