गीत-1
म्हारी कविता पोथी पाना, रददी हाळा ने बेच्याई
कविता तो म्हारी सोतण छै, घर हाळी कहती घुर्राई
जद भी मैं सरस्वती पूजूं, वा खैवे लिछमी जी ध्यावो
बैठाओ ड़ोळ कमाई को, घर मांहीं दो पीसा ल्याओ
कविता ने छोड़ो बालम जी, चाहे बण जाओं हलवाई
कविता तो म्हारी सोतण छै, घर हाळी कहती घुर्राई
अब सूझे ना हीं गीत वीत, नहीं छंन्द खोपडी में आवे
क्यू थोड़ो घणो सोच पाउं, वा जागै खाबा न धावै
मूंसा की ज्यू में जा दुपक्यो, वा म्यांउ की ज्यूं झपटयाई
कविता तो म्हारी सोतण छै, घर हाळी कहती घुर्राई
मन का भाव दुब्या रैग्या, कल्पना हुई नो दो ग्यारा
अक्षर सें डूब्या पाणी में, सब्दां की सूखी सब धारा
जद जद कलम उठाउं छूं, आ जावे छ उंका भाई
कविता तो म्हारी सोतण छै, घर हाळी कहती घुर्राई
वा बोली मत पोतो कागज, थे साजन लीडर थे बण जाओ
पीढयां म्हाकी तर जावेली, मंचा उपर तण जाओ
झांको लल्ली को काको, लड कर चुनाव कुरसी पाई
कविता तो म्हारी सोतण छै, घर हाळी कहती घुर्राई
दो कोडी मोल न कविता को, कविता सूं रोटी नहीं मिले
काविता सूं टाबर नहीं पळे, कविता सूं कूण सा फूल खिले
कविता की ठौर बणाओ थे, रूपया, पीसा, आना पाई
कविता तो म्हारी सोतण छै, घर हाळी कहती घुर्राई
म्हारी कविता पोथी पाना, रददी हाळा ने बेच्याई
कविता तो म्हारी सोतण छै, घर हाळी कहती घुर्राई
***
गीत-2
म्हाने आवे याद घणेरी, आज आपणा गांव की
चौक तिबारा घर की बारयां, बड़ पीपळ की छांव की
सीपाळा की ठंड कड़कती, और सुहाती तावड़ी
कढी मंगोड़ी केर सांगरी, ताती ताती राबड़ी
टाबरपण का साइना सूं, मिल गळबाथा उमाव की
म्हाने आवे याद घणेरी, आज आपणा गांव की
खेतां का गेंला पर जाती, पणिहारंया वे मटके छी
पनघट जाती की रमझोळां, म्हारे हिवडे अटके छी
नेणा कटारयां सूं देवे छी, मीठी पीडा घाव की
म्हाने आवे याद घणेरी, आज आपणा गांव की
तुळसीजी को बड़ो ठांवळो, घर को टाबर लागे छो
चिडि़ चुडकलया की बोलया सुण मैं रोजीना जागे छो
टो्गडिया खातर डकरावण, सुणता धोळी गाय की
म्हाने आवे याद घणेरी, आज आपणा गांव की
आज बटाउ आवळो संदेशो देछो कागलो
कांव कांव सूं गूंज्या करतो, म्हांका घर को डा़गलो
भरया तासला कांसी का सूं, मणवारां छी चाय की
म्हाने आवे याद घणेरी, आज आपणा गांव की
हेथ हरख का गीत भायला, बिना साज ही गावेछा
गेंद दडी अर गुल्ली डंडा, सब में हेत बंधावे छा
पंच चौधरी निपटा दे छा, सगळी बात तळाव की
म्हाने आवे याद घणेरी, आज आपणा गांव की
खेले छा दंगल मेळा में, कब्बडडी पाळा रेत में
बरखा होतां ही महकै छी, मांटी म्हांका खेत में
मोरण सिटटा और मतीरा, खाता पाळ तळाव की
म्हाने आवे याद घणेरी, आज आपणा गांव की
चौक तिबारा घर की बारयां, बड़ पीपळ की छांव की
म्हाने आवे याद घणेरी, आज आपणा गांव की
चौक तिबारा घर की बारयां, बड़ पीपळ की छांव की
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