वै पाणी मुलतान गया
जाण्या अर अणजाण गया,
बूढ़ा बाळ जवान गया।
कुछ बेली समसाण गया,
कोई कबरिस्तान गया।
पैल्यां तो सामान गया,
पाछा सैं महमान गया।
ईं को निकळ्यो योही सार,
वै पाणी मुलतान गया।
दाता बलि, दधीच हरिचन्द,
वै दानी, वै दान गया।
नहिं आया, मे का मिजमान,
बादळ तंबू ताण गया।
कुण कितना पाणी कै बीच,
काम पड्यो जद जाण गया।
नैंण कटार अनोखी मार,
प्राण बच्या, ईमान गया।
अपणी संस्कृति रही अटूट,
मिसर, रोम, यूनान गया।
हठयोगी अर संत महंत,
बादशाह सुलतान गया।
हुयौ ‘बिहारी, दंतविहीण,
काथा, चूना, पान गया।
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बोली इमरत बोली ज्हैर।
सींचौ चाये आठूं फैर।
फूलै नहिं पीपळ-अर कैर।
कींयां निभै बताओ आप,
समदर बीच मगर सैं बैर।
बसै कसायां बीच, मनाय,
बकराकी मां कद तक खैर।
यूं तारा दीखै छै रात,
विपदा मै धोळै दोफैर।
मौत गादड़ा की जद आय,
भाग्यौ आवै सामौ स्हैर।
बगत पड्यां जो आय न काम,
वां अपणां सैं चोखा गैर।
आवै-जावै रीता हाथ,
कुण ल्यावै ले जावै लैर।
यार बिहारी मीठो बोल,
बोली इमरत बोली ज्हैर।
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वै पाणी मुलतान गया जोरदार कविता ही सा
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