कृष्णा कुमारी ‘कमसिन’ री कवितावां

तीन ग़ज़लां
(1)
पैली का रजवाड़ा देख्या
अब का बी ये राजा देख्या

गैल्या गलगच खात देख्या
भूकां मरता दाना देख्या

ठाकर जी देख्या सूणां का
घर-घर गार का चूल्हा देख्या

कोई बगत पै काम न्हैं आयो
देख्या अपणा-पराया देख्या

म्हारी कुण सुणतो बहरा बी
अपणी-आपणी गाता देख्या

लारै रहैबा सूं छै कांइ
दूरां ई जद मनड़ा देख्या

कमसीन उठतांई यौ कांई
मूंडा आख्बारां का देख्या
***

(2)
लोग घणां ई घूमबा-फरबा जावै छै
फेरूं म्हंई तो म्हारो घर ई भावै छै

तू ई छै जीं नैं यो मनड़ौ चावै छै
ईं नै थारै पाछै कोई न्हैं भावै छै

थारी तू जाणै म्हूं तो म्हारी कहै द्यूं
थारी म्है नै तो घणी ई मन में आवै छै

तन में न्हैं हौवै कांई बी बैमारी
जद ई दुनिया का सुख-वैभव भावै छै

सरदा सांची हो तो, यो कहै ग्यौ रैदास
जूत्यां को पाणी गंगा बण जावै छै

मन में राखां ठौर तो छोटा घर में बीं
हेताळा पावणां जतना आवै, समावै छै

जीं घर मान मलै अर, आपणौ पण लागै
कमसिन सज्जन ऊं घर में आवै छै

औरां कै लेखै कट जावै जमारों यो
या कमसिन भाया अतणौ ई चावै छै
***

(3)
न्हैं मंदर की छै न्हैं मस्जद बी माई
छै सारी या बोटां के लेखै लड़ाई

घणा घोखा छो थां घणां चोखा भाई
बड़ी सब सूं या ई छै थां में बराई

बुरो आछौ इक दन थां निपटारौ करल्यौ
न्हैं लागे छै चोखी या नत कीं लड़ाई

कोई बैर राखै तो मरजी सूं राखै
कोई सूं न्है म्हारी तो कोई लड़ाई

घणी दाय आयी ग़ज़ल थारी कमसिन
बधाई, बधाई, बधाई, बधाई
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