कुंदन माली री कवितावां

जोत उजाळी
लोग ठेठ सूं
भटकण लाग्या
पेट-पीठ खेल में
लूंगड़ी संग अंगरखी फाटी
ऐडी फाटी गेल में

ऊंडी आंख्यां नाड़ डोलती
जग री रेलमपेल में
धूप झेलता
छावां ठेलता
कैदी जीवण जेळ में
राजाजी रंगम्हैला में

खेत निराया
फसलां काटी
असल डूबगी भेळ में
स्याळ भरोसै खेती पाकै
कगलियां री सैल में

कूड़ा-कूड़ा भांग उळीचै
सड़क सांकड़ी गेल में
मिनकी थामै
दूध चाकरी
तिरै माखियां तेल में

गीली दाझै
सूखी दाझै
लकड़ी धुप्पल-धैल में
घणी डूबगी
अब नीं डूबै
जोत-उजाळी तेल में ।
***

थांरे कारण
गैरी घाटी हेत री
जुग-जुग लाम्बा लोग
उथल-पाथल प्रेम-रस
सब नै पांवधोक
हियै हिलोळा नाम रा
मूड़ै
मीथा बोल
माठौ मन क्यूं बावड़ै
किण री मांडां ओक

थांरौ घर-घर आंगणौ
थांरी काया-अंग
थांरा मैली गोखड़ा
चढ़ै न दूजो रंग
एक साध्यौ सब डूबग्या
सधी एक नीं बात
बात-बात रै कारणै
अजब-गजब रा ढंग

कन्नी काटै आप सूं
टूंकै छांव खजूर
रैवै किण रै आसरै
बड़लो नांव हजूर !
इकतारौ गाया करै
धरम-करम री बात
मरवन रोवै रोवणा
सरवण साथै घात

ज्यूं आया सूं चालग्या
राजा रंक फकीर
छोड़ो नी चितारणी
वाह रे वाह तकदीर
नीं भूल्या नीं याद है
नीं पाया परमांण
थंरै सुख रै कारणै
मच्यौ मौत घमसांण !
***

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