भगवती लाल व्यास री कवितावां

आग
केसूला रो एक फूल
रेत पे फैंक नै
लोग नाल रिया है वाट
कै मौसम
अब बदळै, अब बदळै
अर वे एक फूल रै
रंग सूं खेल सकै फाग ।
जरूरतां रा
घेर-घुमेर झाड़क्या में
फंसगी है
जिनगाणी री चिरकली
रुई ज्यूं पीनणी आग्या
पांखड़ा
होठां पे अण थाग झाग
गावै है दरद भरियो गीत
जिणरौ अरथ है-
कठै वे आंबा अर
कठै वे बाग ?

रात ठण्डी अर मांदी
म्हूं सुलगावणों चावूं हूं
चिमनी
बरसां सूं कसेर रियो हूं
अघबळिया छाणां
उचींद रियो हूं राख
पण जाणै कठै गमगी है
आग ?
***

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Text selection Lock by Hindi Blog Tips