आग
केसूला रो एक फूल
रेत पे फैंक नै
लोग नाल रिया है वाट
कै मौसम
अब बदळै, अब बदळै
अर वे एक फूल रै
रंग सूं खेल सकै फाग ।
जरूरतां रा
घेर-घुमेर झाड़क्या में
फंसगी है
जिनगाणी री चिरकली
रुई ज्यूं पीनणी आग्या
पांखड़ा
होठां पे अण थाग झाग
गावै है दरद भरियो गीत
जिणरौ अरथ है-
कठै वे आंबा अर
कठै वे बाग ?
रात ठण्डी अर मांदी
म्हूं सुलगावणों चावूं हूं
चिमनी
बरसां सूं कसेर रियो हूं
अघबळिया छाणां
उचींद रियो हूं राख
पण जाणै कठै गमगी है
आग ?
***
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें