मालचंद तिवाड़ी री कवितावां

छेकड़लै दिन आ दुनिया
कविता हुवैला-
छेलो रूंख ।

प्रीत रा मरुथळां
निपजैला कोरी प्रीत ।
चिड़कल्यां लेवैला फेरूं बासो
रूंख री रेसमी छियां ।

पेलै दिन रै ढाळै
छेकड़लै दिन आ दुनिया-
पाछी थारी-म्हारी हुवैला-
***

आकास
थूं कठै आकास
उडार में,
कै पांख में ?
मुगत हां म्हे
कै हां, थारी कांख में ?
बितरो ई तो नीं थूं,
जितरो समावै,
म्हांरी आंख में ?
***

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