गोरधनसिंह शेखावत री कवितावां

आदमी
कांकड़ रै माथै
आवता-जावता लोगां नै
निरखण आळो छग्योड़ो बंवळियो
***

प्रेम
रेगिस्तान रै मांय
जद-कद होवती बिरखा
***

संबंध
दीया रै मांय घाल्योड़ो
थोड़ो उधारो तेल
***

सभ्यता
बिना धणि री
भेळियोड़ी खेती
***

सांझ
नाज रा टोटा में
बुझ्योड़ा चूलासी
***
(राजस्थानी-1 सूं)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Text selection Lock by Hindi Blog Tips