प्रहलाद राय पारीक री कविता

हीण कुण
ग्यान दीठ सूं
सैंचन्नण,
हीण जात रो
भण्यो-गुण्यो
जवान।

घोडी चढतां
मन रै मांय
उछवा रो समदर
मारै हबोला।
हजारु सपना
सायनी रा
जागती आंख्यां
देखै।

ऊंची जात री
मठोठ सूं उपाडता
डाह रा भतूलिया
हाथां में सोट
बीन्द नै पटकण सारू
घोडी सूं।

अग्यान रो
अंधारो ढोंवता,
जातरी कूडी
दाझ सूं
भूसलीजता।
थे ई बताओ ,
हीण कुण।
***

चींत
फ़ूला री सौरम ज्यूं,
अदीठ
पण , भाखर स्यूं भारी,
हुवै चींत ।

चींत रै ताण
ताणीजै ताणो
मिनख रो, समाज रो,
आखै जगत रो।

सौधीजै सौरफ़,
सगली जीया जूण री
चींत रूखालै, पालै,
सम्हालै,
मानखो।

देवै दीठ जीवण रै,
उजलै पख री।

समदंर स्यूं ऊंडी,
आभै स्यूं ऊंची,
मरूस्थल रो रूंख,
हुवै चींत।

ढूंढ़ै जीवण,
मौत री काकी
गार मै।
***

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