कन्हैयालाल सेठिया री कवितावां

कविता
भासा री खिमता नै
तोलण री
ताकड़ी है कविता,
सबदां रै भारै में
चन्नण री
लाकड़ी है कविता,

सांच है सौ टंच
न नुवीं है
न पुराणी है कविता,
मिनख रै हियै में
उकळतै भोभर री
सैनाणी है कविता,

गुड़ है गूंगै रो
उठा-पटक रो
अखाड़ो कोनी कविता,
औखद है आत्मा री
माटी री काया रो
भाड़ो कोनी कविता !
***

ईश्वर
कुण देख्यो है
ईश्वर ?
ईं सवाल रो जबाब
ओ तळाब,
जको कोनी देख्यो समन्दर !
***

खेजड़लो
म्हारै मुरधर रो है सांचो,
सुख दुख साथी खेजड़लो,
तिसां मरै पण छयां करै है
करड़ी छाती खेजड़लो,

आसोजां रा तप्या तावड़ा
काचा लोही पिळघळग्या,
पान फूल री बात करां के
बै तो कद ही जळबळग्या,

सूरज बोल्यो छियां न छोडूं
पण जबरो है खेजड़लो,
सरणै आय'र छियां पड़ी है
आप बळै है खेजड़लो;

सगळा आवै कह कर ज्यावै
मरु रो खारो पाणी है,
पाणी क्यां रो ऐ तो आंसू
खेजड़लै ही जाणी है,

आंसू पीकर जीणो सीख्यो
एक जगत में खेजड़लो,
सै मिट ज्यासी अमर रवैलो
एक बगत में खेजड़लो,

गांव आंतरै नारा थकग्या
और सतावै भूख घणी,
गाडी आळो खाथा हांकै
नारां थां रो मरै धणी,

सिंझ्या पड़गी तारा निकळ्या
पण है सा'रो खेजड़लो,
'आज्या' दे खोखां रो झालो
बोल्यो प्यारो खेजड़लो,

जेठ मास में धरती धोळी
फूस पानड़ो मिलै नहीं,
भूखां मरता ऊंठ फिरै है
ऐ तकलीफां झिलै नहीं,

इण मौकै भी उण ऊंठां नै
डील चरावै खेजड़लो,
अंग-अंग में पीड़ भरी पण
पेट भरावै खेजड़लो,

म्हारै मुरधर रो है सांचो
सुख दुख साथी खेजड़लो
तिसां मरै पण छयां करै है
करड़ी छाती खेजड़लो ।
***

मतीरा
 मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
 मीठा गटक मतीरा ।

      सोनैं जिसड़ी रेतड़ली पर
      जाणै पन्ना जड़िया,
      चुरा सुरग स्यूं अठै मेलग्यो
      कुण इमरत रा घड़िया ?

 आं अणमोलां आगै लुकग्या
 लाजां मरता हीरा ।
 मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
 मीठा गटक मतीरा ।

      कामधेणु रा थण ही धरती
      आं में दूया जाणै,
      कलप बिरख रै फळ पर स्यावै
      निलजो सुरग धिंगाणै ।

 लीलो कापो गिरी गुलाबी
 इंद्र धणख सा लीरा ।
 मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
 मीठा गटक मतीरा ।

      कुचर कुचर नै खपरी पीवो
      गंगाजळ सो पांणी,
      तिस तो कांईं चीज, भूख नै
      ईं री घूंट भजाणी,

 हरि-रस हूंतो फीको,
  रस, जे पी लेती मीरां !
 मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
 मीठा गटक मतीरा ।
 ***


बापू
आभै में उड़ता खग थमग्या
गेलै में बैंता पग थमग्या
हाको सो फूट्यो धरती पर 
बै कुण गमग्या, बै कुण गमग्या?

मिनख मरयो' मरयो पाखी?
सै साथै नाड़ कियां नाखी?
बा सिर कूटै है हिंदुआणी
बा झुर झुर रोवै तुरकाणी।

इसड़ो कुण सजन सनेही हो
सगळां रा हिवड़ा डगमगग्या।
बै कुण गमग्या, बै कुण गमग्या?

मिनखां रो रुळग्यो मिनखपणो
देवां री मिटगी संकळाई,
बापूजी सुरग सिधार गया
हूणी रै आडी के आई?

जीऊंला सौ' पचीस बरस
बिसवास दिरा' किंया ठगग्या?
गिगनार पड़ै लो अब नीचै
सतवादी वचनां स्यूं डिगग्या
बै कुण गमग्या, बै कुण गमग्या?

बापू सा मिनखां देही में
धरती पर मिनख नहीं आया,
आगै री पीढ्यां पूछै ली-
के इस्या नखतरी जुग जाया?

एक जोत रै पळकै स्यूं
इतिहास सदा नै जगमगग्या
ईं एक मौत रै मोकै पर
सगळां रा आंसू रळ मिलग्या,
बै कुण गमग्या, बै कुण गमग्या?

***

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