सत्यनारायण सोनी री कवितावां

॥ एकलड़ी ॥
 तू ही म्हारो काळजो, तू ही म्हारो जीव।
 घड़ी पलक नहिं आवड़ै, तुझ बिन म्हारा पीव!

 जब से तुम परदेस गए, गया हमारा चैन।
 'कनबतिया' कब मन भरे, तरसण लागे नैन।।

 चैटिंग-चैटिंग तुम करो, वैटिंग-वैटिंग हम्म।
 चौका-चूल्हा-रार में, गई उमरिया गम्म।।

 सुणो सयाणा सायबा, 'गी करवा चौथ।
 एकलड़ी रै डील नै, खा'गी करवा चौथ।।

 दीवाळी सूकी गई, गया हमारा नूर।
 रोशन किसका घर हुआ, दिया हमारा दूर।।

 दिप-दिप कर दीवो चस्यो, चस्यो म्हारो मन्न।
 पिव म्हारो परदेस बस्यो, रस्यो म्हारो तन्न।।

 रामरमी नै मिल रया, बांथम-बांथां लोग।
 थारा-म्हारा साजनां, कद होसी संजोग।।

 म्हैं तो काठी धापगी, मार-मार मिसकाल।
 चुप्पी कीकर धारली, सासूजी रा लाल!

 जैपरियै में जा बस्यो, म्हारो प्यारो नाथ।
 सोखी कोनी काटणी, सीयाळै री रात।।

 म्हारो प्यारो सायबो, कोमळ-कूंपळ-फूल।
 एकलड़ी रै डील में, घणी गडोवै सूळ।।

 दिन तो दुख में गूजरै, आथण घणो ऊचाट।
 एकलड़ी रै डील नै, खावण लागै खाट।।

 पैली चिपटै गाल पर, पछै कुचरणी कान।
 माछरियो मनभावणो, म्हारो राखै मान।।

 माछर रै इण मान नैं, मानूं कीकर मान।
 एकलड़ी रै कान में, तानां री है तान।।

 थप-थप मांडूं आंगळी, थेपड़ियां में थाप।
 तन में तेजी काम री, मन में थारी छाप।।

 आज उमंग में आंगणो, नाचै नौ-नौ ताळ।
 प्रीतम आयो पावणो, सुख बरसैलो साळ।।
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