श्याम गोइन्का री कवितावां


तिरस म्हारली है बैसाख
थांरै कनै चमन री दाख
म्हारै कनै प्रीत री साख
थां रो जोबन मदभरियो
म्हारी कुचमादी है आंख
थे हो शीतळ सरवरियो
है म्हारै हंसां री पांख
थे हो झिरमिर सावणियो
तिरस म्हारली है बैसाख
श्याम सूं नीं प्रीत करी जे
पाळ्यो-पोख्यो जोबन खाक.
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बिंधग्या सो मोती
मांय सूं उघाड़ाफ़ीच्यां पै धोती
भू जायी पोती पण बिंधग्या सो मोती
अधमरिया दोघड़उछाळ करै मोकळी
बोबाडै जितणी जोउतणी बा थोथी
समंचार मरिया रा आगूंच त्यार है
जावै जे कूकतीजावै जे रोती
करम अर धरम मांय मन री परधानता
मन ही तो गंगा हैमन ही गंगोती.
कुओ अठीबठी नै खाई
सेवा करी जै बरसां तांई
भांग रै भाड़ै जासी कांई ?
मौत लिलाड़ी लिखार ल्याया
कुओ अठीबठी नै खाई
मूंड मुंडाता ओळा पड़ग्या
निरभागी के कर लै लाई
मजबूरी में हुया मोडिया
प्रीत प्रभु में कोन्या आई
धन-धणियापो मैल हाथ रो
आछी कीरत श्याम कमाई.
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