मधुकर गौड़ री कवितावां

तद बैरण रात ढळै कोनी
अब आंख्यां नींद पळै कोनी
मनङै री जोत जळै कोनी

आंख्यां रो समदर सूक गयो
अब नैणां नीर ढळै कोनी

मन में यादां री उठै हूक
अब सुपना सांच फळै कोनी

आंख्यां पे जद पौहरा लागै
आंख्यां री दाळ गळै कोनी

जद आंख्यां नींद उचट जावै
तद बैरण रात ढळै कोनी

आंख्यां नै आंख्यां जद भूलै
पीङा री पीङ गळै कोनी
***

बिन ममता रो किसङो जीवण
मायङ री आंख्यां मिळ ज्यावै
आसूं रा फुलङा खिल ज्यावै

बिन ममता रो किसङो जीवण
सपना रो मोती छुळ ज्यावै

मां री आंख्यां री अगनी नै
देखै तो धरती हिल ज्यावै

जद मायङ री आंख पसीजै
घावां रा मूंढा सिल ज्यावै

आंख्यां री ममता पाकर तो
जीवण नै जीवण मिल ज्यावै
***

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Text selection Lock by Hindi Blog Tips