गीतिका
सूंळो काम करां तो
अतनो काम करां ।
क्यूं बस्ती की विपदा
देखां बैठा घरां ।
रावन की छाती पै
अंगद-पांव धरां ।
झा।द पसीनो मुळका
आंसू देख झरां ।
कुण थारो, कुण म्हारो
चारूं मेर फिरां
बंध्या-बंध्या पग सोग्या
चौगान्यां पसरां
बंसत छा, पुरखां रो
ऊंचो नांव करां ।
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