अम्बिका दत्त री कवितावां

ठूंठ अर चूंच
धिक्कार छै ई कठफोड़ी जूण नै
सारी उमर
ठक-ठक करतां ही खड जावे
पण
तोल ई न्ह पडे
आवाज ठूंठ में सूं आ रही छै
क चूंच म सूं ।
***

सीसाड़ो
आपन
कदी मीठा तेल को दियो बळती बेरां,
बाती की चरड़-चरड़ सुणी छै ?
बस ।
उतनो सो ही छै
जीवता रहबा को सीसाड़ो
***

म्हां तौ नं पढां
आप न ! कदी
रेल गाड़ी मं बेठ्यां
पाछे भागता रूंखड़ा देख्या छै ?
जणे-गांव ।
स्कूल सूं बस्तो ले
भागतो जा रह्यो होवै
अर माथो हला हला
कह रह्यो होवे
म्हां तौ नं पढा ।
म्हां तौ नं पढा ।।
म्हां तौ नं पढा ।।
***

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