कृष्णलाल बिश्नोई री कवितावां

ओळ्यूं
जीवण रै
मोड़-मोड़ माथै
मिनख
आवै अर जावै.
म्हनैं बांरी
ओळ्यूं घणी आवै
केइ ओळ्यूं मीठी
खांड दांई
केइ है खाटी
छाछ दांई !
ओळ्यूं तड़फ़डावै
बिरछ रै पानां दांई
केइ ओळ्यूं खोखी होवै
केइ ओळ्यूं चोखी होवै
खोखी अर चोखी रो
भरमावै भरम
करावै ओळ्यूं जीवण री
ओळ्खांण
समझावै मरम
कठैई ओळ्यूं बणै
गीतां रो सुर
अर
कठैई बणै
जीवण रो गुर.
***

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