ओम पुरोहित ‘कागद’ री कवितावां

धरती
धरती !
तूं कदैई करती
सिणगार
बेसुमार :
कूमटै
खैजड़ी
बोअटी ऊपर होंवता
हरिया काच्चा पत्ता
जाणै कचनार !
थारी निजरां सामीं
होयो है अनाचार
बता !
कुण राखस री बकरी
चरगी
थारो हरियल संसार ?
***
बता बेकळू
कदैई तपै
कदैई ठरै
कदैई उड-उड घिरै !
बता बेकळू
थारै काळजै मांय
किण बात नै लेय
उठा पटक है ?
क्यूं उठै
भतूळियो बण
कड़कड़ी खाय
आभै रा
गाभा फाड़ण
अर क्यूं पाछी आ सोवै
सागी ठिकाणै ?
***
रूंख
थे
एक अभियान मांय
रूंख लगायो
दूजै मांय सींच्यो
अनै
तीजै अभियान मांय
काट बगायो ।
ठीक है
थे मालक हा, रूंख रा
पण उथळो तो देवणो ई पड़ सी
कै जिकी रूंख नै जाम्यो
पानका निकळण सूं लेय
काटण तांईं मून ही
बा धरती
उण रूंख री कुण ही ?
***
कविता
कविता
न तो लिखीजै
अर
न बांचीजै ।
कविता
इन्नै-उन्नै
खिंडियोड़ी
अबखायां रै अंगारां नै
आपरै अंतस मांय भेळ
बुझावण री
एक क्रिया है
इण मांय
बळण री संभावना जादा है
बचण सूं ।
इणी क्रिया नै
उथळ
आपरै मांय
मैसूस करण रो नाम
कविता रो
बांचिजणो ।
इसै समै
कविता बांचणो
अनै लिखणो
किणी जुद्ध सूं स्यात ई कम हुवै
कुण है जिकै मांय इण जुद्ध नै
जीतणै रो दन हुवै ।
***
मन करै
मन
कीं न कीं
करतो रैवै ।
मन करै
पाखंड़ी बणूं
कळी बणूं
फळ बणूं
या
बा डांडी बणूं
जकी माथै लागै
पांखड़ी
कळी
फूल
फळ ।
अर फेर करै
बणूं भंवरो
सुंघू फूल
बेअंत
कदै ई करै
बणूं रुत
फगत बसंत ।
***
सबद
(1)
जुद्ध मंय
मिनख री
लगोलग हार रै बाद बी
बच रैया है
सबद
पळकता
सूरज दांई
आवण आडा
प्रीत री रीत
बिसतारण ।
(2)
इयां इ नीं
बिरथा गमाओ
सबदां नै
राखणा पड़सी
कीं सबद
दूसर नेड़ा
आवण रै मिस
मून तोड़ण सारू ।
***
कोई तो हा
आं ईंटां रै
ठीक बिचाळै
पड़ी आ
काळी माटी नीं
राख है चूल्है री
जकी ही काळीबंगा में
कदैई चेतन
चुल्लै माथै
कदैई तो
सीजतो हो
खदबद खीचड़ो
कोई तो हा हाथ
जका परोसता
घालता पळियै सूं घी
भेळा जीमता
टाबरां नै ।
***
माटी होवण री जातरा
माटी रो
ओ गोळ घेरो
कोई मांडणो नीं
ऐनाण है डफ रो
काठ सूं
माटी होवण री जातरा रो ।
डफ हो
तो भेड भी ही
भेड ही
तो चरावणियां भी हा
चरावणियां हा तो
हाथ भी हा
हाथ हा तो
ओ क्यूं हो
मीत हा
गीत हा
प्रीत ही
जकी निभगी
माटी होवण तक ।
***
नीं बतावै
कठै राजा
कठै परजा
कठै सत्तू-फत्तू
कठै अल्लाद्दीन दब्यो
घर सूं निकळ
थेड़ काळीबंगा रो
हाडक्यां भी मून है
नीं बतावै
आपरो दीन-धरम ।
***
ढिगळी होवण तांई
भोत तळै जाय
नीसरयो है कूओ
रास रा निसाण
आपरै मुंडै री
समूळी गेळाई में
कोरियां ऐनाण
पण नीं बतावै
किण दिस
कुण जात
भरती ही पाणी !
काळीबंगा रो मून
बतावै
एक जात
आदमजात
जकी
भेळी जागी
भेळी ई सोई
भेळप निभाई
ढिगळी होवण तांई ।
***

हाइकू ई हाइकू…

चारूं कूंटां है
खड़ी भींतां ई भींतां
आदमी  कठै?

मरजी थांरी
फरमान आपरै
चालै है सांसा।

जग री राड़
मिटै मिनखां मतै
कठै है मतौ?

सिर गिणल्यौ
बगै है आ दुनियां
पग उठायां ।

भेजौ कविता
छपै जागती जोत
बांचसी कुण?

नूंईं कहाणी
लेखक री खेचळ
बोदी डकार।

लुगाई जात
प्रेम रो सागर
डूबै जगत।

मोह बादळ
सावण री बिरखा
मा रो परस।

घंटी खडक़ै
टण टणण टण
नीं जागै देव।

बोदिया बांस
नीं टिकी बा छात
पडग़ी धच्च।

थांरी सोगन
परभात हो ई सी
म्हारी सोगन।

अंतस पीड़
ऊबकी खद बद
टपकी आंख्यां ।

पीळा पानड़ा
हवा सूं बतळावै
झड़स्यां अब ।

घर रो मोह
कदै नीं छूटियौ
छूट्या बडेरा।

आया बातां में
भर दी सै ढोलक्यां
पडग़या वोट ।

करगया कोल
पाछा ई नीं बावड्या
चूकगया दिखां ।

अंधारो घणो
चाईजै जै चानणौ
कर खटकौ ।

ऊंचौ है आभौ
मिल ई सी मंजल
पग तो उठा ।

सिराध नेड़ा
टंक टळसी अबै
मिलसी नूंता ।

जूनी झूंपड़ी
बिरखा अणथाग
भीतर टोपा ।
***
मंजल दूर
पूगणौ बी लाजमी
बिसाई छोड ।

फूटरौ मुंडौ
आरसी मुंदगियौ
करड़ कच्च ।

खोपड़ी फूटै
सुण जग री बातां
चा सुरडक़ ।

चुप हा जितै
देवता गिणीजता
बोल्यां मिनख ।

थां री बकरी
परायौ खेत चरै
दूई देखाण ।

झीणा जे  गाभा
मन ऊजळौ राख
उल्लू रा पट्ठा ।

किताबां पढ
लिख नां ओ कूटळौ
रूंख बकसी ।

कित्ती ई लिखी
कित्ती न कित्ती छपी
ले लै ईनाम ।

दुनियां घूम्या
कोई नीं सुणै बात
घर ई भलौ ।
     
गयौ सूरज
पूरब सूं पछम
अंधार घुप्प ।

बातां भोत है
करां तो कीयां करां
सिर रौ डर ।

देखता जितै
उतरगी फोटूड़ी
घरड़ घच्च ।

धरती फाड़
निकळ्यौ भंपोड़
अरड़ झप्प ।

फाटक माथै
आंवता ई खुलियौ
चरड़ डचूं ।

बोल देखाण
अणबोली ककर
भासा दिराव ।

धरम निभै
गऊ माता आपणी
बोखड़ी रूळै ।

परमेसर
पंच-सरंपचड़ा
जे नीं जीतै तो?

चढै परसाद
धाप गिटै पुजारी
देवता मून।

संपादक जी
रोज लिखै कविता
आप ई छापै ।

चाळीस पोथी
ईनाम नै उड़ीकै
बण कामरेड ।

1 टिप्पणी:

  1. ज़बरो झाम्पो काम है भाई नीरज़ थारो !
    अळगो
    आंतरो
    बैठ मून
    करै साधना
    अंवेरै साहित
    करै
    निरख-परख
    निरवाळी
    बिना लाग लपेट!

    थारो जस ऊजळो
    देखै जगती
    जकी बणसी
    थारी सगती !

    भरसी पाणी
    फ़िरसी
    गाणी-माणी
    हाल थूकै जका
    आभै ताणीं !

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