भंवर भादाणी री कवितावां

इतियास - 1
रैयो है
थांरो एक इतियास -
लाम्बो
मोकळो लाम्बो।
आदमी रै
सागै-सागै
चाल्यो
थांरो इतियास
थां - थांरी
कींयां-कींयां बणाई
गाथावां-पोथ्यां
आ एक कांणी है -
अजूं तक छे नीं आयो जिकी रौ
आ कांणी है
साच
उत्ति ही सांच
जित्तो
सूरज अर चांद।
कदै ई थे।
भाखरी चढ़
निरखता हरी चादरी
समेट लैंवता -
एक निजर में।
धरती नै कर दैंवता
नागी -
साव नागी !
थांरी निजरां रा
जित्ता करां बखाण
उत्ता ई थोड़ा।
थांरी लिलाड़ी चमकती
थांरी आंख में जादू हो
थांरो चैरौ-पळपळतो सूरज
थांरा हाथ रा हुनरी
थांरा रैया है
घणाई सरूप
घणा घणा औतार !
कदै ई थे
द्रोणाचार्य बण
बजाई तो
हाजरी बाजरी री
पण
मांग लियो
आसीस रै गरब सूं
जीवणो अंगूठो
एकलव्य रौ
कैरी मजाल क
धोखो केवै ...!
कदै ई थे
तोड़ण विश्वामितर रौ
बरत
धारये रूप
मेनका ।
म्हे माना
माननी पड़ै
थांरी -
अर
थांरे जिसां री
महिमा।
***

इतियास - 2
कदै ई थां
रथ चढ
समझायौ
सार-राज रौ।
कदै ई बैठायो
ऊंची भाखरी
भाठो -
थां में ताकत है
भाठां पूजावण री
अर थां
पूजार दिखाया है,
इण रौ गवाह है
आखो इतियास।
थांरा थरप्यौड़ा
भैरूं-भोपा
भोमिया
आज ताई राखै
रूतबो-आपरो
थांरी छैलायां रा
जतरा करां
बखाण
उत्ता ही थोड़ा है।
थांनै मोदीजणो चाहीजै
कै थांरा जायोड़ा
बजावै है
भूंपा-थांरांहीज
थांनै गुमेजणो चाहीजै
थै जद चावौ
थांरै सांमी
आय ऊभै
आभौ
थे मालिक रया हो
आभै रा
अर रैवोला
जद तांई
तद तांई
म्है बखाणतां जावांला
थांरी ख्यातां-कथावां
आ थांरी ई
ताकत है
कै कान सूं
जणाय सकौ
टाबर
अर -
बगस सकौ
जस रा सोनळिया मुगुट,
थे बड़भागी रया हो
कै थां जणैं-जणैंई
घड़ी बाणी
बा बाणगी
देवबाणी।
***

इतियास - 3
थांरी मैमावां
अपरम्पार
थारै सौ-सौ
लम्बा हाथ।
थांने घमंडीजणो चाहीजै
कै थां जिका करया
कारनामा
बै बणग्या इतियास।
म्है तो हां ई कांई
किसै बाग री मूळी !
थांरी महिमावां सारू
रचीज्या
वैद
गीता पुराण
अर थां खातर नई
म्हानै जरू जकड़
राखण नै
बटीज्या
सिरीपूज मनु-संहितावां
रा
रंढू
थे भी खूब हो
माननी पड़ै थांरी मैमावां
आ थांरी ई है खसूसी
कै - थै
बणाय दो लूट नै
कानून।
म्हानै तो थांरा
पीवणा चाहीजै
घोळ घोळ
पग !
थांरा पग
पग नीं है
पूजनीक पगलिया है
थांरा पगलिया ई नीं
उण री धूड़ ई है
पूजणजोग
जिके सूं भाठो
बणै लुगाई।
थे भी खुब हो
ऐके कांनी
लुकर लूंटो
सिंदूर
अर दूजै कांनी
तारो-भवपार।
इण खातर
खाली म्है ई नीं
म्हारै जिसा
करोड़ों-करोड़
गावै है थांरा भागवत !
ओ थांरो ई
है जादू
कै थे ऐकै सागै
नचाय सकौ
काठ री पूतळयां
थे जाणो
नूंवां-नूंवां
रस्ता बणावणा
जिकै में
आदमी भटक सकै।
आदमी रौ भटकाव
थांरो है जीवण
थांरो परकोटो है।
पण -
थे ओ भी तो जाणो
कै जाणै है
आदमी
थांरो इतियास
अर-आ बात
सोळै आना खरी
कै जकै जाण लियो
इतियास
जाण लै बोई
पसवाड़ा फोरणा !
***



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