अमृत ‘वाणी’ री कवितावां


जमी जमाई दुकान
एक नेताजी की
जमी जमाई दुकान
असी खतम होगी ,
कै ईं चुनाव में तो
वांकी जामनी  ही जपत होगी ।

बाजार में
म्हारा पग पकड़
बोल्या कविराज,
म्हैं रग्यो
ईं चुनाव में
म्हारी ईं भारी हार को
थोड़ो बताओ राज ।

म्हैं धोती उठाके
सबने वो निसाण दिखायो,
जठै नेताजी के
छ महीना पैली
एक पागल कुत्तो खायो ।

म्हैं बोल्यो
कुत्ता का काटबा से
खून में ईमानदारी बढ़गी,
अर ईं रियक्सन से
दूजो कुर्सी पे चढग्यो
अनै कुर्सी थांका पे चढगी ।

कुत्ता का जैर से
राजनीति को
सारो ई जैर कटग्यो ,
अर यो एक ही कारण
जो अबकी बार
थूं कुर्सी सूं ई हटग्यो ।

सुणोजी नेताजी
राजनीति में
भारी विनास हो जातो ,
वो कुत्तो जो पागल नीं होतो
तो थांको  स्वर्गवास हो जातो ।
 
नेताजी बोल्यो-
थूं मारा दोस्त होयके
या बात कैवै,
म्हनै तो बा बात बता
के ईंज राजनीति में
पाछो कसान लेवै ।

म्हैं बोल्यो करवालो
डाकूआं का अड्डा में रिजरवेसन,
लगवाओ सुबह-सांझ
सांप का इंजेक्सन पे इंजेक्सन ।
कुकर्म का दो केपसूल
गबन की चार गोळ्या पाओ ,
अय्यासी की हवा, दारू की दवा
या कोर्स छ महीना खाओ ।

डाकू जो मानग्या थानै
हमेसा उंची मूंछ रहेगी,
अरे कमीसन लेबो ई सीखग्या
तोई विदेसां तक पूंछ रवैगी ।

परदादा के दादा को
यो जूनो कोट भी उठै धूलेगो ,
थू सब जाणेगो ,
पण जाण के भी सब भूलेगो ।
थू नटतो-नटता खावेगो
ओर खाके झट नट जावेगो,
पण याद राखजै
थे लुकर कठै बीड़ी भी पी
तो धूंओ अठै आवेगो।
***

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