जोगेश्वर गर्ग री कवितावां

पंचलड़ी
बोल्यां विगर समझलै भाई, वै बातां
बोलण में कोनी चतुराई, वै बातां

थारै लेखे हंसी-मसखरी होवैली
म्हारै लेखै है अबखाई, वै बातां

म्हैं तो समझ्यो म्हैं जाणू कै तू जाणै
कुण अखबारां में छपवाई, वै बातां

जिण बातां सूं प्रीतड़ली परवाण चढ़ी
आज करावै रोज लड़ाई, वै बातां

"जोगेसर" जिद छोड़ सकै तो छोड़ परी 
सैण-सगा कितरी समझाई वै बातां 
***

1 टिप्पणी:

  1. नीरज जी !
    कठा सूं खोज लाया आ जूनी ग़ज़ल ? घणो घणो धन्यवाद आपने. आनंद आयगो.आखरी शेर थोड़ो सो अशुद्ध छपग्यो है. शुद्ध शेर इण तरियां है :
    "जोगेसर" जिद छोड़ सकै तो छोड़ परी
    सैण-सगा कितरी समझाई वै बातां "

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