स्वयं के विरुद्ध
फिरै उघाड़ा अरणा भैंसा
खेत उजाड़ै
ताबड़तोड़
जिका बै बीज्या नीं है !
घणी खेत रा
डरै उणां सूं
खेत कदैई
डरै नीं
बां सूं –
हुवै अमर चायै अरणा भैंसा ।
सुळग्यानी बै अरणा भैंसा –
पाकी फसलां करै पख में !
काची पौदां करै बख में !!
सोध – शोध नैं –
लागै जद ई बां रै हाथ
अर तद बै लिखै एक
दमदार कविता –
“स्वयं के विरुद्ध !”
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