औ'ळमौ
पांच बरसां री बेटी मानसी
केठा क्यूं निराज है
घर रै एक खु'णै में खड़ी
मन्नै देखतांईं फूट पड़ी
पापा, आपरी जोड़ायत नै समझाल्यौ
मन्नै लड़ती रै'वै
घर-घर खेलूं
तो कै'वै पढ
चित्र बणाऊं
तो कै'वै पढ
किणी सूं बात करूं
तो कै'वै पढ
का'णी सुणाण रौ कै'वूं
तो कै'वै पढ
आखै दिन
पढ-पढ'ई क्यूं कै'वै मम्मी
मेरै सूं बात क्यूं कोनी करै मम्मी
समझाल्यौ आपरी जोड़ायत नै
म्हूं होयगी ईं सूं अबै कुट्टी
म्हूं कोनी इण री बेटी।
***
गाय
पीण नै
दूध-छा
खाण नै
दही - घी- मक्खण
बाळन-लीपण नै
गोबर
अर खेत सारू
खात देवै ।
मिनख
इण रा
हाड-चाम भी
काम लेवै ।
मिनखां सारू
आपरौ
आ' कण-कण
अरपित करद्यै
आ' गाय है
कै
आ' मा है ।
***
पांखी
लूखौ सूकौ
जिकौ भी
मिलज्यै
खा ल्यै ।
का'ल री
कोई चिन्त्या नीं
का'ल री का'ल देखै
अर
उड ज्यै
पांख्यां फैलाय'र
खुलै असमान में
भळै
आपरां री आवै ओळ्यूं
तद
सूरज छिपण सूं
पै'लांईं आ ज्यै
आपरै आ'लणै
आपरां रै बीच
बातां सारू ।
***
किरसाण
खेत मांय
इन्नै-उन्नै गिणती रा
बळ्योड़ा सा
बाजरी रा बूँटा
अर काचर-मतीरड़्यां री
अळसायोड़ी बेलां नै
निरखतौ-पळूंसतौ
सियाळै-उन्याळै
ठरतौ-बळतौ
चळू-चळू सींचतौ
टाबरां नै पधेड़्यां चढायां
टैम-बेटैम बिलमांवतौ
बावळैतरियां उभाणै पगां भाजतौ
अर आंख्यां फाड़तौ
इण रेत रै संमदर मांय
कांईं जोवै
आ' नान्ही सी ज्यान
औ' मुड़दल सो किरसाण ।
***
जुवान बेटी
जुवान होंवती बेटी
जद घर सूं बारै जावै
तद
कितै लोगां री
भूखी आंख्यां रौ
सा'मणौ करै
उणां री फब्तियां सुणै
अर फेर भी
बा' कित्ती सै'ज रै'वै
पण
आपरै मन री पीड़ा
बा' किणी नै नीं कै'वै ।
***
बसंत
खेतां मांय ओढ्यां पीळौ पोमचौ
सरस्यूं हरख मनावै
मोरिया नाचै
अर कोयलड़्यां गीत गावै
मधरी-मधरी चालै
आ' पुरवाई पून
जद आवै
बसंत मेरै गांव
बसंत....
थूं बसज्या नीं
बसंत थूं बसज्या
मेरै गांम।
***
मुसाण
गांव रै बारै
मुसाणां रै असवाड़ै-पसवाड़ै
खड़्या रूंख'र झाडख़ा
लागै उदास-उदास
अर रूंखां माथै
बैठी चिड़कल्यां
निरखै
म्हां सगळां नै
गूंगी अर बावळी सी
बुत बणयोड़ी
चुपचाप
तद
लागै मुसाण
फकत
माटी रौ अजायबघर ।
***
सुपणा
गांम री गळ्यां
अर घरां री
छातां माथै
खिड़की जंगळां में झांकता
अर भींतां माथै बैठ्या
भांत-भांत रा
पाट्या पुराणां गाभा पैर्यां
ऐ भोळा-भाळा टाबर
जिका
जातरियां री आंख्यां में जोवै
गम्योड़ौ लाड'र प्यार
आपरै नान्है नान्है हाथां नै
इन्नै-उन्नै हलाय'र
पण
पड़ूतर में बा'नै मिलै
फकत
धूंवैं रौ भतूळियौ
जिकौ
ले ज्यै बां'रा
मखमली सुपणां
अर दे ज्यै
घिरणा रा बीज ।
***
भींत
म्हे रैह्वां
एक घर मांय
तीन घर बणाय'र ।
भींत....!
भींत क्यूं देखै
कांई दूजो
क्यूं कै
भींत बणा राखी है
म्हे आप - आपरै भीतर ।
***
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