मोहन आलोक री कवितावां

रचना
 बो रचै
अर जणा रच देवै
तो बी मांय
कोई खामी नईं बचै ।

हू सकै
आपनै बा रचना अधूरी सी लागती रैवै
आप मांय कोई जिज्ञासा
            जागती रैवै !
आप कोई दूजी रचना रै साथै
बींरो मिलाण करता रैवो
अर आपंआप नै यूं
बेफालतू हलकान करता रैवो ।

पण बा रचना
जिसी हुवै
जितणी हुवै
      पूरी हुवै है ।
कोई रचना रो
किणी दूजी रचना जिसी हुवणो
      कणा जरूरी हुवै है ?
      ***


सानेट
ऐ आजकाल रा आलोचक ,श्री ऐ छोरा
कोई कविता री,कहाणी री,एकाध मांड
र ओळी,अर अब बणियोडा साहित्य सांड
पग चोडा कर-कर चालै जिका घणा दोरा
आंनै बूझो जे थे साहित रो अरथ,बैठ
अर बूझौ भई ! समीक्सा कांई चीज हुवै
तो ऐ कैसी साहित्यकार री खीज हुवै
एक दूजै पर,आंरी लाधैली आ ही पैठ
ऐ इणी पैठ पर करिया करै है,गरज़-गरज़,
आपरी परख, नूंई-सी कोई फ़िल्म देख
रात नै ,दिनूगै गाणा गा-गा लिखै लेख
अर ढूंढै थारी कवितावां रै मांय तरज़ ।
जे आप इण री मितर-मंडली रा सदस्य
नीं हो तो नहीं आपरै लेखन रो भविस्य ।
***
{सौ सानेट"-पेज-६४}


दूहा
(श्री कन्हैयालालजी सेठिया री ओळ्यूं मांय)
(१.)
धोरा मैं  दीस्यो  सदा, जिण रै पाण बसंत ।
अस्त हुई वा दीठ छवि, आप गयां श्रीमंत ॥
(२.)
कैर,  कंकेड़ा,  रोहिड़ा, सीवण,  सिणिया,घास ।
मरू रा गादड़ा लूंकड़ा, थां बिन हुया उदास ॥
(३.)
मरू री बाकळ धूड़ नै, आप चढ़ाई सीस ।
धोरा री  धरती करी, सुरगां सूं इक्कीस ॥
(४.)
मरुधर    रो   गौरव  हुई,  राणा   री  तलवार ।
गौरव गाथा थे लिखी, जद कर कलम उठार ॥
(५.)
मायड़  रो  हेलो  सुण्यो,  हुया  हियै  मैं छेक ।
उण पीड़ नै व्यक्त कर, मांड्या कवित अनेक ॥
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