पकड़
नंदी की आडी
झींतरा लटाकायां
करियाड़ सूं
चपक रियो छै
करीड़ ।
सालवार
नंदी उफणै छै,
पणी खांचै छै
करीड़ को सरीर ।
पाणी हार ज्या छै
नंदी उतरियां पाछै
करीड़ का झींतरा
दूणा हो’र
लटक ज्या छै
करियाड़ पै ।
ताकत
करीड़ में कोई न्हं
धारती में छै ।
करियाड़ की गार की
पकड़ ढीली होज्या
तो करीड़ को हरियो हरियो मन
खुद पै गरभै छै
गार की पकड़ की
न्हं सोचै ।
जीं दन
जलमभोम सूं
छूट ज्यागा
मनख्यां का
करीड़ जश्या डील
नंदी को एक झकोळै
ले जार
खार-नाळ में
भर देगो ।
बरसां सूं अश्यां ईं
भरतो आरियो छै
करीड़ कै ताईं,
नंदी को पाणी
खार-नाळ में ।
अब वां में सूं
एक को भी
नांव नसाण कोई न्हं ।
***
सभाव
खाटी छ्याछ सूं
कद बणी छै
मीठी राबड़ी ?
छ्याछ का सभाव की नाईं
राबड़ी को भी छै
एक सभाव ।
स्वाद,
जतनी मूंडा में छै
उतनो ई
राबड़ी में भी छै ।
खटास कै तांई
ओर जादा खटास मानबो
मूंडा को काम छै ।
जाणतां-बीणतां
मत बणा रै, भीम्या
खाटी छ्याछ की राबड़ी
मान लै म्हारी बात ।
म्हारा मूंडा को
स्वाद बगड़ैगो
तो गाळी
थारै नांव खडैगी
राबड़ी कै तांईं
छ्याछ कै तांईं
कुण खाडै छै गाळ ?
हांडी सूं जादा
खुद पै रोस खा
खाटी छ्याछ की
राबड़ी मत बणा,
घर में भी,
देश में भी ।
***
बोध
आप बोल्या
“कविता मांडो”,
म्हूं कविता कर दी ।
आप बोल्या
“भोत बढ़िया कविता छै”
म्हारा होटां हांसी आगी ।
म्हूं आपणी कविता पै
न्हं हरक्यो,
आप की बात पै हांस्यो ।
आर्डर मलतां ईं
सप्लाई करिया
सीमेंट जशी
म्हारी कविता
अब म्हं नै सोबा न्हं दे ।
बार बार
सपनां में आवै छै
बोलै छै
“जश्या वां का कहबा पै
थं नै म्हारी रचना करी
उश्यां ईं
म्हारा कहबा पै
वां को मण्यो मसक दै ।
***
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