शिवराज छंगाणी री कवितावां

जय गणतंत्तर
जय गण तंत्तर
जय जन तंत्तर

हरियळ चूनर
ओढियोड़ी तन
मुळक रैयो है
माटी रो मन ॥

फेरे जादू मंत्तर ।

बलिदानां रा बीज
बोयोड़ा खेत में ।
आजादी री पौध
फळै है रेत में ।
लेवै सांस सुतत्तर ॥

फूलां री सौरम
मैके है बाग में ।
सूरज-चांद उजासै
तन अनुराग में ।
दूर हटियो परतंत्तर ।

भेद भाव रौ भरम
मिटै है हेत में ।
त्याग-तपस्या फळै
करम रै खेत में ॥

देवै जीवण मंत्तर
जय गण तंत्तर
जय जन तंत्तर
***

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