श्यामसुंदर भारती री कवितावां

खेजड़ी
पगां री ब्यावां नीं
घणी तिरसी नै
साव सूख नै तिड़ाई नाड़ी री गळाई
आखौ डील फाटोड़ौ

लोही रा आंसुवां री गळाई
खाक मांय कर बैबतौ
पिघळियौड़ै गूंद रौ रेलौ

छाती माथलै
चिनियेक ठींडै मांय सूं
मकोड़ा आवै-जावै
खाली पेट रौ परमाण
वा थोथ

बरसां सूं
रिन रोही मांय
एक टांग माथै ऊभी एकली तपै
तपसण खेजड़ी

अर अठा रौ मिनख
खेजड़ी री जूण जीवै ।
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