दुर्गादान सिंह गौड़ री कवितावां


गीत
बेटी
जद माँडी तहरीर ब्याव की, मँडग्या थारा कुल अर खाँप,
भाई मँड्यो दलाल्याँ ऊपर अर कूँळे मँडग्या माँ - बाप,
थोड़ा लेख लिख्या विधना ने, थोड़ मँडग्या आपूँ आप,
थँई बूँतबा लेखे कोयल! बणग्या नाळा नाळा नाप,
जाए सासरे जा बेटी, लूण -तेल ने गा बेटी/
सबने रखजे ताती रोटी अर तू गाळ्याँ खा बेटी-------

वे कह्वे छै-तू बोले छै, छानी न्हँ रह जाणै कै,
क्यूँ धधके छै कझली कझली, बानी न्हँ हो जाणै के,
मत उफणे तेजाब सरीखी, पॉणी न्हँ हो जाणै के,
क्यूँ बागे मोडी- मारकणी, स्याणी न्हँ हो जाणै के,
उल्टी आज हवा बेटी/ छाती बाँध तवा बेटी/
सबने रखजे-----------------------------

घणीं हरख सूँ थारो सगपॅण ठाम-ठिकाणे जोड़ दियो,
पॅण दहेज का लोभ्याँ ने पल भर में सगपॅण तोड़ दियो,
कुण सूँ बुझूँ कोई न्हॅ बोले, सबने कोहरो ओढ़ लियो,
ईं दन लेखे म्हँने म्हारो, सारो खून निखेड़ दियो,
वे सब सदा सवा बेटी/ थारा च्यार कवा बेटी/
सबने रखजे -----------------------------

काँच, कटोरा और नैणजल, मोती छै अर मन बेटी,
दोय कुलाँ को भार उठायाँ शेषनाग को फण बेटी,
तुलसी, डाब, दिया अर सात्यो, पूजा अर हवन बेटी
कतनो भी खरचूँ तो भी म्हँ, थँ सूँ न्हॅ होऊँ उरण बेटी,
रोज आग में न्हा बेटी/  रखजे राम गवा बेटी/
सबने रखजे -----------------------------

यूँ मत बैठे, थोड़ी पग ले, झुकी झुकी गरदन ई ताण,
ज्यां में मिनखपॅणों ई को न्हॅ, वॉ को क्यूँ र कश्यो सम्मान,
आज आदमी छोटो पड़ग्यो, पीड़ा होगी माथे स्वॉण,
बेट्याँ को कतनो भख लेगो, यो सतियाँ को हिन्दुस्तान,
जे दे थॅने दुआ बेटी/ वाँ ने शीश नवा बेटी/
सबने रखजेताती रोटी, अर तू गाळ्याँ खा बेटी।।
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(आभार : श्री अतुल कनक)

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