राकेश मूथा री कवितावां


नदी रेवेला ......
मने खबर है
मैं नी रेवुला
एक दिन
नी रेवेला वे सब जका मारे सागे है
इन खबर सू मैं उदास नी
खुश हूँ  कि मारो खात्मो व्हेला
अर जोश सू भरियो
प्रीत फैलातो जाऊं  हूँ
हेरेक री अंखियाँ मैं
प्रीत रो उजास देखू
आ प्रीत जतरी देर रेवेला
उतरी देर मैं रेवुला
शरीर रो काई  है
शरीर तो बरसाती पाणी है
बरसाता  मैं चढ़ेला
गर्मी मैं सुखेला
पिन नदी तो सुखी व्हेने भी
नदी .
***

बा रेत है ....
ओ धोरो काल तक लारले गाँव ताई हो 
अबे कई बरसा सू 
ओ अटे ही है इयान ही 
बालू  पी गियो पाणी 
गिट गियो 
धोरो रे सागे 
उड़्गी प्रीत 
अबे नी तो वे  रातां है 
नी चांदनी मैं मुलकती
धोरो रे लारे छिपती
मने बुलाती अर मने देख 
भागती .........
बा रेत है ......
समय री आंधी मैं बह्गियो ....मारो वो टेम 
मारे हिये मैं ठेर गियो ......
***

आ चाबी थाणे
इन आभे
हूँ उड़ सूं
खुद री जमीन
खुद रे नाव सू लेणे
थाणे बकारू
आज इन वेला
खाय थां सू  ठोकर
मैं रोला नि करूं
पक्को करू हूँ खुद ने
जिको आड़ो थे केरियो है आज बंद
काले मैं उनने खोलुला
अर खुद रा ताला लगा
ने थारे सामी  खुद री नजरां
ऊँची करुला
अर उन संचे ही सौंप दू ला
आ चाबी थाणे
हूँ मिनख रेवनी चावू हूँ
ने मिनख ही देखनी चावू ........
इन सारु
मिनाख्पनो तो मैं नी इ.
***

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