रामजीलाल घोड़ेला री कवितावां

सराध
सराध रो दूसरो नाम
श्रद्धा हुवै
सराध में सगळा
शुभ काम बंद हुवै,
घणी टेम स्यूं लोग
सराध मनांवता आवै,
परलोक गयोड़ा पितरां नै
खीरचूरमा जिमावै,
कित्ती अजीब है दुनिया
ऊपर स्यूं प्रेम दिखावै,
जीवतां नै रोटी कोनी
मरियां पछै छप्पन भोग जिमावै,
बामण जीमै, काग जीमै
जीमै टाबर सारा
जींवता नै जिमायो कोनी
बण्या रह्या खारा,
पाळ-पोस बडा करिया
सगळी दिराई शिक्षा
आप जद हुग्या बूढा
मांगणी पडै भिक्षा
मरिया पछै नाम पूजावै
लोग सोचै बेटा पुण्य कमावै
जींवता नै रोटी पाणी रो टोटो
सराध में बामण काग जिमावै !
***

क्षणिकावां

दिल
दे बैठ्यो
आपरो दिल
घरै ऊंदरा
कर लिया बिल ।
***
आत्मा
जद हुवै खराब
आत्मा
फ़ेर मिलसी कियां
परमात्मा ।
***
फ़ोन
बात्यां करण नै
लगायो हो फ़ोन
बिल भरण खातर
लेवणो पडै लोन ।
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कब्र
खुद्या पछै
कब्र
फ़ेर ही होसी
सब्र ।
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सम्पर्क- चन्द्र साहित्य प्रकाशन
लूनकरनसर (बीकानेर) राजस्थान
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