राजूराम बिजारणियां ‘राज’ री कवितावां

थमो भाईजी !
आंवता-जांवता
डोभा फाडता
दांत तिडकांवता
करै कुचरणी
हाथां सूं
तिसळतै
सबदां नै
सामटणै सारू
आकळ-बाकळ
कवि साथै!
थमो भाईजी, थमो.!
उळझो मत उण सूं
पड जावैला
लेणै रा देणा
बैठ्यो है बो
खाएडो खार
लारलै
कैई दिनां सूं
खुद में
खुद रै
नीं मिलणै री
पीड नै पाळ्यां !
***

फरक
मुठ्ठी में
कसर दाब्योड़ो
जीवण
छिणक में
सुरसुरार बण जावै रेत !
पानां री ओळ्यां में पळती प्रीत
जोड़ नै पानै सूं पानो
हरियो करद्‍यै हेत !
फरक कांई ? देख !
एकै कानी प्राण बिहूणा
दूजै कानी म्हैक !!
***

पाणी
पाणी !
फगत पाणी हुवै
न्हैर में बैंवतो
झरणै सूं हींडतो
दूर हुवै
भेद-अभेद सूं !
नाजोगो माणस !
कुंड
माटकी
लौटै रो
पीवनै सीतळ पाणी
उकळतो-उफणतो
कियां उतार देवै
छिणक में
मुळकतै मूंढां रो पाणी !
***

अबै बताओ
लखदाद है !
लोग बोल जावै
साव धोळो कूड़
घणै आतमबिसवास साथै।
अबै बताओ
कूड़ पर करां झाळ
का सरावां उणारै
आतमबिसवास नै !
***

रचाव
कविता कोनी
फाङर धरती री कूख
चाणचक उपड़ियो भंफोड़ !
कविता कोनी
खींप री खिंपोळी में
पळता भूंडिया
जका
बगत-बेगत
उड़ जावै
अचपळी पून रो
पकड़ बांवड़ो !
नीं है कविता
खेत बिचाळै
ऊभो अड़वो
जको
ना खावै ना खावणद्‍यै ।

कविता सिरजण है
जीवण रो !
अनुभव री खात में
सबदां रा बीज भरै
नूंवीं-नकोर आंख्यां में
सुपनां रा
निरवाळा रंग ।
अब बता-
कींकर कम हुवै
सिरजणहार रै सिरजण सूं
कवि रो रचाव ?
***

किंयां समझावूं
क्यूं पैरया म्हारा गाभा.?
हुई किंयां हिम्मत
म्हारो रुमाल लेवण री.??
किंयां समझावूं भाईजी!
कोनी पैरूं
फगत फुटरापै खातर
आपरा गाभा।
कवच री गरज पाळै
थांरा गाभा
ढाल बणै रुमाल.!!
बधावै
हौंसळो ई
किणी बडेरै दांई
हर बगत
घर री जद सूं
निकळ्ती बेळा।
इण नाजोगै बगत में
थांरा गाभा पैरण रो मतळब
धीणाप ई हुवै
आप माथै।
***


गळगी-रळगी
आभै रै लूमतै बादळ सूं
छुडानै हाथ,
बा’...
नान्ही सी छांट !
छोड देह रो खोळ
सैह परी बिछोह..!
गळगी- हेत में,
रळगी- रेत में।
***

आस
फेरूं-
जळ जावै
बुझतां दिवलां री लौ ।
सम्भळ जावै
गिरतां-पडतां
सोच परो माणस-

कांई दूर-कांई पास..?
जद ताईं जीवंती है
आस ।
***

दसोळी
(1)
कदी  छांवलो  रळमळतो
कदी  तावड़ो  तळमळतो

रात  ढ़ळै  इमरत  झारै
दौड़ै  दिनड़ो  बळबळतो

भातो  लेनै  व्हीर  हुई
ओढ्यां पीळो  पळपळतो

कोसां टुर  पाणी ल्याणो
आधो घड़ियो चळभळतो

पड़ी बेलड़्यां सिर जोड़ै
हंसे मतीरो  खळबळतो
***

(2)
टुकड़ां में जिनगाणी क्यूं
लूल्ही लंगड़ी काणी क्यूं

दे  दाता   बादळ  पूरो
टोपां-टोपां  पाणी  क्यूं

प्रीत  पाळतां  धोरां  री
रेतड़ली अणखाणी  क्यूं

जिण खेतां जीवण रमतो
झुर-झुर रोवै  ढ़ाणी क्यूं

करै   खोरस्यो  धापूड़ी
उण री पदमा राणी क्यूं
***

(3)
देख   पळूंसै  माथो खंजर  जिण  हाथां
धोक  देवणी  सामीं  छिप   मारै  लातां

गट-गट करता गिट जावै  अळसू-पळसू
तिड़-तिड़कावै  राफ  करै  थोथी  बातां

रुपली  रूप  रम्यो रै जिण  नैणां मांही
दिन दिन देणों  दान लूटणों  नित रातां

खेल खेल में रळ्या घोड़ां में खर खच्चर
चर-भर  चालै  चाल  शकूनी री जातां

गळी-गळगळी गांव-गुमड़ियो कुण देखै
फर-फर  पूग्या पार खार समदर सातां
***

(4)
थांरी  थळगट  सिर झूकै  औकात दे
डाळी  लटकै  फूल  अेकलो  पात दे

नाड़ ताणली  कांटा  कळियां कुमळाई
पूनरोसणीपाणी  साथै  खात दे

उमर गाळदी आखी रुळतां  खोड़ां में
सदा  डांग पर  डेरा अब तो छात दे

बदळै रंग हजार पलक में किरड़ै ज्यूं
बां  चैरां  रै  मनसूबां  नै  मात  दे

हिंदु मुसळिम सिख  ईसाई न्यारा क्यूं
जै देणो तो   सबनै  माणस  जात दे
***

1 टिप्पणी:

  1. सैंग कवितावां आच्छी अर प्रभावित करै. खासकर अबै बताओ,रचाव अर गज़लां घणी दाय आई

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