चैन सिंह शेखावत री कवितावां

चंदो
(1.)
चंदो
मेड़ी ऊपराकै
उचक'
ताळ रै मांय
झाँक्यो,
पण बैरी हा
धोळा धोरा
आय बिचाळै
चानणी-चून्दड़ी
खोस लीनी ,
ओढ़'
पसरग्या।
***

(2.)
चंदो
जाणै बोरलो
रजनी बाँध
बीनणी बणगी
टणमण टणमण
करता तारा
मोत्यां सिरखा
ढुळ्या ओढणी
ओढी सोवण
नार निराळी।
***

2 टिप्‍पणियां:

  1. अबार सांवर जी रे बारे में ही पढ़े ही...और अचानक आपरी इन पोस्ट पर निजर पड़ी..घनो हरख हुयो...आ कविता म्हारे कने कोनी ही...आपरो बहुत आभार :)

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  2. चैन सिंह जी आप चांद बण’न आया है..कविता ले’र....स्वागत....छोटी पण बढ़िया कवितावां..नीरज जी धन्यवाद आप रो...

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