सतीश छीम्पा री कवितावां

म्हारो देवता
एक देवता मरग्यो
भोत पेलां
अर खुसगी पांखं
म्हारै नेहचै री ।

अबै कोई कहाणी कोनी बणै
ना ई कोई सबद ई जुडै सबद सूं
लागै जाणै
जिग्यां ई कोनी ऊबरी
म्हारै खातर
आं सबदां मांय
अर जे ऊबरिया है तो
फ़गत थोथा विचार !

म्हैं म्हारो
थकेलो लेय
पसर जावूं
***

निढाळ होय
सोच री बाथां में
देखूं म्हैं
म्हारै देवता नै
उण रै भोळापै नै
अर आंख्यां मांय़
बणती एक कहाणी नै....
***

स्यात थूं मुळकै
आज रात भोत सुहावणी सी है
बायरियो बाजै
मुळकती सी धरती
होय रैयी है खांगी सी
पंखेरू नीं है अणमणा
दरखत जतावै आपरी खुसी
पानड़ा खिंड़ा-खिंड़ा
स्यात
थूं मुळकण लाग रैयी है.......
***
डांडी सूं अणजाण
होळै-होळै
डांडी चालतो,
रैवै 
डांडी सूं अणजाण
किनारै-किनारै चालै
पण है बो अणजाण
आ कोनी जाणै कै
कठै टिब्बां
जिनावर मिलसी
कठै ढाणी
कठै पाणी मिलसी ?
होळै-होळै
डांडी चालतो
रैवै डांडी सूं अणजाण !
***

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