विष्णु शर्मा री कवितावां

अदीठ नै
कांई है थारो नांव
बताव तो सरी
म्हैं भूल्यो हूं सांच
जगाव तो सरी.

माटी री आग
कदी नीं देखी
बीज री जान
दिखाव तो सरी.

थिर तो कोनी
सगळी जीया जूण
पाप रा घड़ा
फ़ुडाव तो सरी.

अठै ई बतावै
माया मोह रा टोटका
काट तो इयां री
बताव तो सरी

कैवै मिनख री जान
थारै हाथ रो खैल
जीवण रा सबक
सिखाव तो सरी.

थूं दीस्यां बिना ई
सारै सगळा काम
सूरज री आंख
चिमकाव तो सरी.

कींकर ओळ्खूं
थंनै परमातमा
ओळ्खांण थारी
बताव तो सरी.
***

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