कृष्ण वृहस्पति री कवितावां

भूरियोबावळियो
नित भरम रै भतुळियां मांय
भचभेड़ी खाऊं
लगाऊं निज री ओळखण रा अन्ताजा
अर गम जाऊं कोई सोच रै ऊंढै समंदर मांय
अनै लेवण लागूं आपूं-आप सूं उथळा।

कै कांई हूं मैं?
रात नै चाणचकै उठ
लिख्योड़ो कोई गीत
कै किणी बिरहण री ओसरती दीठ?

कांई हूं मैं -
कजावै सूं निसरयोड़ी खंगर ईंट रो ताव
कै बोड़ियै कूवै री
टूट्योड़ी लाव?

कांई हूं मैं?
गुवाड़ मायं ठड्डै सूं करयोडी बाड़
कै मोथां मांय
लड़ी जांवती निसरमी राड़ ?

गम्मी-सम्मी निभणवाळी
कोई जूनी सी रीत
कै लेव नै उडीकती
सीर आळी भींत?

कांई हूं मैं?
घर-घर भचभेड़ी खांवतो
अमर बकरो
कै गऊशाला हाळै बूढ़ियै सांड रो
टूट्योड़ो ढुगरो?

आखर हूं कांई मैं?
आज जणा निसरियो हूं
निज री खोज मांय
तो क्यूं ना फिरोळ नाखूं
एकू-एक ठांव
ढारो अर छपरो
पोळ अर तिबारी
ओबरी अर अटारी
सह बारी बारी।

अर जे फेरूं बी नीं लाध्यो
तो भूरियै बावळियैदांईं
खोस ल्यूंला मास्टर रा पाटी अर बरता
अर गांव री एक एक डोळी माथै
मांड दूयंला खुद रो नांव-
भूराराम जोशी (एम. . इंगलिश)।
***

बै
बै घणा कारसाज है
म्हारै मूण्डा ऊपर छींका लगा
गुदारै अरज
आप बोलो सा!
बोलण ऊपर कोई पाबंदी नीं है।

बै घणा चालू पड़ै
म्हारै हाथां माय थमा देवै
पाटी अर बरता
अनै बारखड़ी हाळौ कायदो लुको
कैवै-
आप आखर तो मांडौ
कायदा बी छप जासी।

बै घणा स्याण-समझणा है
आठ करोड़ जीभां नै अडाणै राख
खरीदै आपरी कुरस्यां
अनै धमकार कैवै-
कांई करोला बोल
म्हे बोलां हां नी।
आगै ई ध्वनी-प्रदूषण घणो है।
***

एक सूं मत सारो
जे आपरै
भोगै खावै तो
देखो हमेस दो सूं बेसी सुपनां
क्यूं कै
एक सुपनो तो तूटज्या है
पसवाड़ां रै मांय
अनै दूजो
बारियै रै हेलै सूं।

जेकर आप धारई ल्यो
कै किणी नै चावणो ईज है
तो आपनै राखणी चाईजै
आंख्यां री
दो सूं बेसी जोड़ी
क्यूं कै
एक तो पथरा जावै उडीक मांय
अनै दूजी रै ऐवज आ जावै
दो जूण रो आटो ।
***

कद तांई
म्हे,
हां म्हे ही देवांला
म्हारी तिस नै कुवा
अर म्हारी भूख नै बाजरी।

म्हारै पांती री राड़
म्हे ई लड़ाला
अर म्है बांधाला
म्हारै घावां उपर ग्याबणा फोआ।

म्हानै ई काटणा है,
म्हारा बायोड़ो
अर म्हानै ई बांवणी है
म्हारी पगथल्यां खातर पाछी सूळां।

म्हानै ई पीवणो है
म्हारै पांती रो मेह
अर म्है ई ओढ़णो है
म्हारै सिरां उपर तण्योड़ो तावड़ो।

म्हारी पीड़ री कवितावां
म्हे ई लिखांला
म्हे ई दिखांला
म्हारै ओदर मांय बळती
इण आग रै आगूंच
अर म्हे ई बुझावाला
बेमाता रा मांड्योड़ा आंक।
आखिर कद तांई
जोवांला बीं री बाट
जिण रै होवण रो नीं है
एक बी सबूत।
***

आगियो
म्हांनै अरथ सोधणा है
उण जियारै रा
जिकै री सांसां रै लाग्योड़ा है-
बिलांत-बिलांत माथै सांधा।

म्हांनै करणी है
उण संबंधा री जोख
जिकां नै जळम स्यूं ढोया है
म्हूं म्हांरै लोई-झांण मगरां माथै।

म्हैं बूझणो चावूं
उण सुपनै रो साच
जिकै मांय आप
म्हारी चामड़ी री जाजम बिछायां
करै हा बैसका पड़ियोड़ा बळदां रै साथै
मजलस।

म्हारै इण सोध री सींवां
अंधारै री एक समूळी दुनिया है
अनै आस रो
फकत एक आगियो
जिण रै लारै पड़ियोड़ो है
टाबरां रो एक टोळो
आपरी नान्ही-नान्ही हथेल्यां रा
सिकंजा लियां
कांई ठा कद सूं ?
***

हूं मजबूर हूं।
रात रै खनै
नींद है, सुपना है
थक्योड़ी सांसां नै सिराणो है।

म्हारै खनै
फकत दो आख्यां है।

रात मजबूर है
बिना आख्यां रै
नींद अर सुपना काईं?

म्हैं थोड़ो अड़ियल हूं
खुली आंख्यां ई
देखल्यूं सुपना
अर नींद रांड रो कांई है
घणकरीक तो बा लेग्यी
अर थोडी-भोत तो
धींगाणे बी आई जावै है।

दिन री झोळी मांय
आग है, उजास है
दो रोट्यां रो सुंवाज है
अर म्हारै खनै
एक दिन-रात चस्णियो डील है।
अब दिन के
तावड़ै रो अचार घालसी
बी नै तो करणो ई पड़सी
म्हारै दुखणियां माथै सेक।

पण-
म्हूं मजबूर हूं
नींद, सुपनां, उजास अर आग
स्सै रा स्सै पराया है
अर म्हारै खनै
बिना सुपनां री सूनी आंख्यां,
अर एक होळै-होळै धुकतो
छणो-सो डील है।

जिको कीं बीं दिन
भक देणी चेतन हो
छेकड़ फूंकीज ई जावैलो
अर बुझ जावैली
आज बळती ऐ आंखां ई।
***

पाणी
म्हैं तिसायो नीं मरियो हो
जे आ बात
म्हारै बैरियां नै ठाह लागज्या
तो बै मेरी छमाई रो
घड़ियो तांई कोनी भरण देवै।

मेह रै खातर म्हारी लड़ाई
बादळां स्यूं नीं
सीधी इंदर स्यूं ई ही
जे आ बात
कुआं नै सुणज्या तो बै
सौ हाथ ओर उंडा हूज्यावै।

बादळां ने देख
घड़ियां फोड़ण री कैबत
म्हारै तांई नी कथीजी।
म्हे तो पाणी नै
चड़स स्यूं नितारां अर
चळू स्यूं बरतां हा।

पाणी रै खातर लोईरस्सो
म्हारो सुभाव तो नीं है
पण मेह नीं आण रा समचार सुणर ई
म्हारै गोडां पाणी नीं पड़ ज्यावै।
आ दुनियां तो फकत पाणी पीवै है
पण म्हारी तो आंख रै मायं
ओ बैरी जीवै है।
***

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Text selection Lock by Hindi Blog Tips