राजेश कुमार व्यास
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दो कवितावां
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दो कवितावां
रेतघड़ी
पून धोवैधोरां मंड्या पगलिया
कीं नीं रैवे बाकी
रेतघड़ी
कण-कण
री करै गिनती
बित्यौड़े नै करती
मुगत।
कविता खोले किवाड़
अंधारै मांयहाका करती
धमकावती आवै पून
चमके बैरण बीजळी
अर
धोरा उडावती
उपड़े है आंधी
बिण बादळ
बरसै मेह
उंडी आस
हियै री अकड़ सूं चालै सांस
साचाणी
अबखौ है मारग
म्हूं
धमीड़ा खावूं...
सिरजूं आखै जग री पीड़
कविता
खोले
आस रा किवाड़
अबखै बगत।
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