गीत- ओळूं
ठेला-ठेल मची सड़कां पर,सुस्तांवण न कठै न ठांव ।
इण माया नगरी में आई , ओळूं थांरी म्हारा गांव ॥
मिनखपणै रो काळ अठै है,
पड़्यो प्रीत रो टोटो ।
ऊपर सूं है घणो फ़ूटरो,
मन रो माणस खोटो ॥
अठै तीख रो तपै तावडो़ , अठै कठै है बड़ री छांव ।
इण माया नगरी में आई , ओळूं थांरी म्हारा गांव ॥
अब झूरां बां धरकोटां पर,
झिरमिर पड़तो पाणी ।
लारै रै’गी सुख री घड़ियां,
करती गाणी - माणी ॥
अथै बजारां सुपना बिकग्या,भरी भीड़ में हरया दांव ।
इण माया नगरी में आई , ओळूं थांरी म्हारा गांव ॥
अठै भीड़ में फ़िरै भटकता,
बण्या लोग बिणज्यारा ।
अठै कठै "कासम" री का’णी
हुणतै रा हुंकारा ॥
अठै है गीत कठै पिणघट रा, अठै सुणौ कागां री कांव ॥
इण माया नगरी में आई , ओळूं थांरी म्हारा गांव ॥
***
म्हूं के बोलूं
म्हूं तो कुछ नीं बोलूं
म्हूं तो चुप हूं साहब,
बाहर सूं दीखूं-
भीतर सूं घुप हूं साहब ।
दड़ बोच्यां बैठ्यो हूं
डरतो तलवारां सूं-
मीठो खरबूजो हूं
कट जासूं धारां सूं ।
थे बळती तीळी माचस री
म्हूं तूडी़ रो कुप हूं साहब ।
थे म्हारी किस्मत रा मालक
थे कहदयो सो ठीक।
हुकुम-हज़ूरी गोल-चाकरी
म्हां हाथां री लीक,
चौकस-चतुर फ़ील्डर थे,अर
म्हूं सीदो सो गुप हूं साहब ।
***
श्री जनकराज पारीक
जिला-श्रीगंगानगर,राजस्थान
श्री जनकराज पारीक
(17 सितम्बर, 1947)
30-मंडी ब्लोक,श्रीकरणपुर-335073,जिला-श्रीगंगानगर,राजस्थान
जनकराज जी पारीक री कविता "ओलूं" घणी चोखी लागी-ओलूं थारी म्हारा गांव,पाई गर्मी में बड़ री छांव!
जवाब देंहटाएंवाह भाई नीरज,
जवाब देंहटाएंबडो़ जोर रो काम करियो !
आदरजोग जनकराज जी पारीक री राजस्थानी कवितावां लगावाण सारू मोकळी-मोकळी बधाई !
सांतरो काम कर रै’या हो आप !
जुग-जुग जीओ !
नीरज भाई सा
जवाब देंहटाएंप्रणाम !
आदरजोग जनकराज जी पारीक री राजस्थानी कवितावां लगावाण सारू मोकळी-मोकळी बधाई