उपेंद्र अणु री कवितावां

हीरा
मी सागर नै होम ना सोपाड़ मयं
वकेरायला हैं ।
कारा-कारा / गोर गट्ट लीड़ीया पाणा
एम लागे है
जाणे
जिंदगी नू जहर गराक रोकी नै
जगे लगे
विराजमान थईग्या हैं
नाना-नाना सिवलिंग
नै इज
अमारी सभ्यता नै
संस्कृति पाण !
लोडीया बणवा हारू भी
कई संघर्ष करवा पड़या हैं ।
न जाणे
कणी काठी सिताल उपर
जोवन ना मद मय
गांडी थई नदी ना
अट्टहासी झपाटा पड़िया
नै टूटी गई सिताल
कणा गरीब ना हपना वजू
थई ग्यं नानं बटकं
जेम वयं हरिये आग पेटी नी
पूरा ना ताण मय
वेते-वेते
आपणे आप ऊं
लड़ते-लड़ते
ई बणी ग्या
गोर-गोर लोड़िया पाणा
कोई आपने पूजे
तौ कोई लोडी हमजी
सटनी पण वांटे
पेट नो खाड़ो भरवा
पण ई तौ सबने आलै है
हीक
जीवण जीवणी थकी
जूजवा नी हिम्मत
नानं भूलकूं नी
मुलकाव वजू ।
***

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Text selection Lock by Hindi Blog Tips