तेजसिंह जोधा री कवितावां

पीणो सांप
चेतो
चेतोके थांरी छाती माथै
कुंडाळो घालर नासां सहारै
फण साध्यां
बैठो है पीणो सांप
पीवै, भासा, भरोसो अर सांस

पोछड़ी
जद ओ
पूछ रो फटकारो देयर जावैला
तद थांनै देस अर
आजादी रो अरथ समझ में आवैला

हतभाग ! कै मोड़ो व्है जावैला
मोड़ो व्है जावैला !
***

चोथी आळी बांचणियां नै
कीं तो खायग्यो राज
कीं लिहाज
अर रह्यो-सह्यो खायगी चूंधर खाज
-चौथी ओळी बांचणियै नै
जचै ज्यूं मांडो आज ।
***

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