राजेश कुमार व्यास री कवितावां

सरनाटो गावै सुनपण रा गीत
गुमग्या
सगळा ही सबद
विगत नै जोवता
हांफता, फेंफिजता
आखर भी
धुंधळा पड़ग्या
सरनाटो गावण लागग्यौ
सुनपण रा गीत
*** 
रेतघड़ी
पून धोवै
धोरां मंड्या पगलिया
कीं नीं  रैवे बाकी
रेतघड़ी
कण-कण
री करै गिनती
बित्यौड़े नै करती
मुगत।
 
*** 
आंधी हुयौड़ी रात
जाग्यौड़ी आंख
मांय
गैळ जगावती
नींद लावै
आंधी हुयौड़ी रात।
***
 
धरती आभौ बण जावै
मुगत करै
थारी औगत
आखती-पाखती री
सगळी ही अबखांया सूं
बेकळू मांय न्हावै मन
धरती आभौ बण जावै
अर
धोरा समन्दर।
***
 
भोर रो उजास लिखै कविता
अंधारै ने भगावतो
चानणौ भरे साख
थारै होवण री
भोर रो उजास
लिखै कविता।
***


कविता  खोले किवाड़
अंधारै मांय
हाका करती
धमकावती आवै पून
चमके बैरण बीजळी
अर
धोरा उडावती
उपड़े है आंधी
बिण बादळ
बरसै मेह
उंडी आस
हियै री अकड़ सूं चालै सांस
साचाणी
अबखौ है मारग
म्हूं
धमीड़ा खावूं...
सिरजूं आखै जग री पीड़
कविता
खोले
आस रा किवाड़
अबखै बगत।
***

 
चाय पीवती मां
जद
कनै नीं हुवै
आंख्या मांय
बसै मां।
छुट्टी आळे दिन
तावड़ै आवण तक
नीं जागै बिनणी
मां
नै कोई फरक नीं पड़ै
बैगी उठै
पण
बिस्तर नीं छोडै
डरै कठैई
हाको नीं हो जावै
चाय पीवण री हंुस होते थकै भी
बिनणी  नै जगावै कोनी
बोली बाली उडीकै
बिनणी रै दिनूगै ने
घड़ी कानी सोधती
मांय सू सरमिजती
बिनणी उठै
कैवे
आज मोड़ो होयग्यौ
थानै चाय नीं दे सकी,
अणभार लावूं...
चाय पीवती
मां साव कूड़ बोले
म्हारी आंख भी
आज
कीं
मोड़ी ही खुली।
***

आंगण कोड मनावै
जद
घरै आवै मां
आंगण कोड मनावै
अेकलेपण  रै
जंजाळ सूं निकळता
टाबर भेळा होय
पूग जावै आपरी दारी रै कनै
सब खातर
कीं न कीं
लाई है मां
मां
नै सगळा री ही फिकर है
खांसी रूकै कोनी
पण
पैली पूछै
थूं नींद तो पूरी लैवे?
म्हूं
याद करूं
मां बालपणै मांय
सूतै नै कदेई नीं जगावती
कैवती
थोड़ी क ताळ
तो सूवण दां
नींद कठै पड़ी है
मां
ठीक ही कैवती
नींद आणी सोरी नीं है।
***

राड़ भोभर बणावै
सूरज सरीखा
रोज उगै सूपना
पूरा नीं हौवे
जणै
बण जावै
सुळगती थेपड़्ंया
धूखै आखौ डील
भुंआळी खा
कुरळावै मन
आभै रा उतरै
लेवड़ा
पित्तरां री ओळ्यू
मांय री बळत बधावै
खूंजा संभाळूं जणै
कीं नीं मिलै
खुद सूं
खुद री
आ राड़
भोभर बणावै।
***

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